23.1.17

जिंदगी अपना एतिहास फिर नही दोहरायगी ...

कुछ सालो बाद ये पल बहुत याद आयेगे,
जब हम सब दोस्त अपनी अपनी मंजिल पर पहुंच जाएंगे,
अकेले जब भी होगे साथ गुजरे हुए लम्हे याद आयेगे,
पैसे तो बहुत होगे पर सायद खरच करने के लिए लम्हे कम पढ जाएगे,
एक कप चाय याद दोस्तो  की दिलाएगी यही सोचते सोचते फिर से आंखे नम हो जायेगी ,
दिल खोलकर इन लम्हो को जी लो यारो  जिदंगी अपना एतिहास फिर नही दोहराएगी।...

19.1.17

यादो की एक झपकी ...

जब भी तेरी याद आती आखे भर जाती,       पास अगर तो आ जाती शांशे थम जाती,         दूर अगर तू चली जाती धडकने रुक जाती,          जुल्फे अगर तो लहराती यादे फस जाती,             पास अगर तेरे मै आउ क्यो तू दूर चली जाती,      जब तू लंबे लंबे कदम बढाती दिल की खामोशी बढ जाती ,                                                अब कभी ना आना मेरी जिंदगी मै तू दोबारा मै घुट मर के जी लूँगा बेचारा....

13.1.17

गोद और कन्धे की तलाश...

गोद और कन्धे से लगकर कितना शकुन मिलता है गोद मिले तो आंखे नम हो जाती है कन्धा मिले  तो दिल ख्यालो मे अटक जाता है मेरा भी तो गोद कन्धे का सहारा खो गया है आंखे बंद करता हू तो वो नजर आती है आंखे खोलता हो तो वो नजर आती है "क्या वजह थी" "क्या वजह थी" क्यों सिर्फ  मुझे ही मेरा नही प्यार नही मिला  इन सवालो  से रोज लढ़ता हू मैं दस्को से     सोया नही हू शकुन की एक झपकी लेने के लिए कोई गोद ढूंढता  हू कोई कन्धा ढूंढता हू लेकिन मैं उस तढ़फ को अपने अंदर शांत नहीं होने देता  मैं उस आग को बुझने नहीं देता मैंने उस दर्द को अपनी ताकत बनाया है खुद को इस काबिल बनाया है कि एक नजर में ही इंसान की रूह तक पढ़लू...
यह बड़ा आसान है ये येसा है जैसे किसी मां का बच्चा खो गया हो और वह सदियों तक हर चेहरे से सवाल पूछती फिरे के  मेरे जिगर का टुकड़ा देखा है कहीं हर चेहरे को देखकर वह अंदाजा लगाती फिरे कि कहीं यही तो नहीं वो किसी भले इंसान ने उसे पाल लिया होगा बड़ा हो गया होगा शादी कर ली होगी मुझे याद करता होगा ऐसे जख्म कभी नहीं भरते क्या उस मां को नींद आती होगी नही अब या तो वो   मां सारी जिंदगी किसी जिंदा लाश की तरह यहां वहां भटकती रहेगी या फिर वो कमर कसेगी और दुनिया में खोए हुए दूसरे मासूमों को संभाल कर खुद को थोड़ा सुकून पहुंचाएगी उस मां की नजर बाकी मांयो  से ज्यादा तेज होगी वह चेहरे पढ़ने और  जरुरते समझने में ज्यादा ऐक्सप्रट हो जाएगी बच्चों से जुड़ी हर जानकारी हर किताब उसके लिए किसी कुरान से कम ना होगी यह बड़ा आसान है बस तुम्हें कीमत चुकानी होगी तुम्हे अपने जिगर के टुकड़े को गवाना होगा ताकि तुम्हारी आंखें खुले और ऐसी खुले की फिर बंद ना हो ये आग मुफ्त में नहीं मिलती तुम्हें ख़ुद को जलाना पड़ता है तुम किसी और के खून  से अपनी कलम रंगीन नही कर सकते  तुम्हें अपना खून बहाना होगा ।....

11.1.17

परछाइयों सी होती है यादे।

मेरे साथ अकसर रातों में ऐसा होता है, किसी सपने के वजह से आधी रात में नींद टूट जाती है, और मैं एकदम हड़बड़ा के उठ बैठता हूँ. नींद टूटने के बाद कुछ पल के लिए तो मुझे पता भी नहीं चल पाता कि मैं कहाँ हूँ, किस कमरे में हूँ, किसके घर में हूँ, किस शहर में हूँ? जब पूरे होश में आता हूँ तो समझ आता है कि मैं तपा मंडी के
 कमरे में हूँ. ऐसा सिर्फ रातों में ही नहीं होता, दोपहर को भी जब कभी थका हुआ सो जाता हूँ और नींद खुलती है तो कुछ पल के लिए मैं पहचान ही नहीं पाता अपने इस कमरे को. मैं बड़े हैरानी से सामने की मेज, कुर्सी, टीवी, किताबों को देखता हूँ. सब चीज़ों को मैं इस तरह देखता हूँ जैसे इनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, कुछ पल के लिए लगता है मैं किसी अजनबी के कमरे में आ गया हूँ, ये सब...ये कमरा ये घर असली नहीं है, ये बस एक भ्रम है. असली तो मेरा घर है, मेरे शहर का मेरा वो घर. मन बड़ा बेचैन हो जाता है. बहुत से ख्याल आने लगते हैं, मेरा ये घर नहीं तो मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? क्यों अब तक रुका हुआ हूँ मैं इस शहर में और शहर के इस घर में, जो मुझे अजनबी सा लग रहा है? जो भी सोच कर आया था इस शहर, क्या मैंने वो पा लिया ? नहीं. तो फिर क्यों मैं यहाँ अब तक टिका हुआ हूँ. रात की आधी नींद में आधे होश में ये सारे सवाल हमेशा परेशान करते हैं मुझे. सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, शायद घर से बाहर रह रहे अधिकतर लोगों के साथ ऐसा होता होगा, खासकर उन लोगों के साथ जो कुछ सपने लेकर दूसरे शहर आये थे और वो उन सपनों को पूरा नहीं कर पायें. उस वक़्त वापस घर लौटने की बात दिमाग में बहुत तेज़ी से घूमने लगती है, लेकिन मैं उस बात को मन के किसी भीतरी कोने में धकेल देता हूँ. मन के अन्दर से आवाज़ आती है, कि तुम बेवकूफी कर रहे हो, किस चीज़ का इंतजार है तुम्हें अब? जो तुम्हें चाहिए था वो अब तक नहीं मिला, और कितना इंतजार करोगे तुम? जाओ वापस लौट जाओ. मैं मन की इन आवाजों को अनसुना कर देता हूँ. शायद एक बार घर छूट जाने के बाद वापस लौटना आसान नहीं होता. हाँ, घर लौटना आसान होता भी होगा, लेकिन उन लोगों के लिए जो जिस मकसद से घर से दूसरे शहर आये थे, उन्होंने वो मकसद पूरा कर लिया हो. लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए घर लौटना आसान नहीं होता. यूँ खाली हाथ वापस लौटना कोई चाहता भी नहीं.

अब ये सोचना भी अब मुश्किल लगता है कि जब ग्यारह-बारह साल पहले मैं अपने शहर से निकला था पढ़ाई के लिए दूसरे शहर, तो मेरे पास मात्र दो बैग थे, और अब देखता हूँ इस घर में मैंने कितना सामान इकट्ठा कर रखा है. हैरानी होती है कि मैंने कितना कुछ जमा कर लिया है घर में. हॉस्टल का वो कमरा याद आता है, जहाँ सबसे पहले मैं रुका था. सरस्वती माँ, हनुमान जी की मूर्तियाँ, कुछ कपड़े, कुछ किताबें और मेरा एक टेपरिकॉर्डर, इनके अलावा मेरे हॉस्टल रूम में कुछ भी नहीं था. और उस समय से लेकरं अब तक ऐसा लगता है कि मैंने एक दूसरा घर बसा लिया है यहाँ. बहुत से लोगों को ये नार्मल लगता होगा, लेकिन मुझे हैरानी होती है, पता नहीं क्यों किस बात कि हैरानी. घर से निकले ग्यारह-बारह साल हो गए, और पता भी नहीं चला? वक़्त ऐसे ही तो बीतता है, नहीं...बीतता वक़्त नहीं, बीतते हम लोग हैं.

बारह साल पहले जब मैं दूसरे शहर आया था तो जाने क्या क्या मन में सोचा था. आँखों में जाने कितने सपने लिए हुए मैं चला था घर से. क्या हुआ उन सपनों? कुछ भी पता नहीं चल पाया. कैसे और क्यों वो इस कदर बेरहमी से टूट गए या कहूँ कि कुचले गए. मैं ये भी नहीं जानता. कुछ तो मेरी गलती रही थी और कुछ वक़्त और दोस्तों की मेहरबानी थी. बारह साल पहले दूसरे शहर में आया था, तब कुछ और बेशकीमती चीज़ें मेरे साथ थीं, जब मैं घर से चला था...जो तुमने मुझे दिया था....कुछ चिट्ठियाँ, तुम्हारे बेक किये हुए बिस्कुट, तुम्हारे दिए तोहफे जिनसे मेरा बैग भरा था, तुम्हारा प्यार और तुम...तुम मेरे साथ थी मेरे पास थी, जब मैं चला था अपने घर से दूर. क्या कहा था तुमने उस शाम जिस शाम मुझे जाना था. याद है? तुमने कहा था, तुम मुझसे दूर नहीं जा रहे, बल्कि मुझे पाने के लिए तुम पहला कदम उठाने जा रहे आज. आज सोचता हूँ तो लगता है जो भी मैं अपने साथ लेकर बारह साल पहले चला था किसी दूसरे शहर, सब कुछ तो छूट गया पीछे... तुम्हारा साथ, तुम्हारा प्यार.. सब कुछ जाने कहाँ पीछे छूट गया. इतने सामान मैंने इन बारह सालों में जमा कर लिए हैं, लेकिन फिर भी लगता है अकसर कितना खाली सा हो गया हूँ मैं.

रातों को नींद में अकसर मुझे आवाजें सुनाई देती है, लगता है तुम मेरे से बातें कर रही हो. जैसे उस रात हुआ था. हुआ कुछ भी नहीं था, लाइट कटी हुई थी, और मैं सोया हुआ था. खिड़की खुली थी, मुझे जाने क्यों ऐसा भ्रम होने लगा कि तुम उस खिड़की के पास खड़ी हो, और मेरे लिए वही गाना तुम गा रही हो जो तुम अक्सर गुनगुनाती थी.. “लग जा गले...”. मैं बिस्तर पर ही आँखें बंद किये लेटे रहा था. ये पागलपन है, लेकिन फिर भी जाने क्यों उस रात मुझे ये पक्का यकीन था, कि तुम कमरे में मौजूद हो, और ये डर भी था कि मैं जैसे ही अपनी आँखें खोलूँगा, तुम गायब हो जाओगी. और इसी डर से मैं अपनी आँखें नहीं खोल रहा था. तुम्हारी आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी, तुम्हारे कमरे में होने का एहसास था मुझे. लेकिन उस एहसास को टूटना था, वो टूट गया. अचानक से लाइट आई, और मेरी आँखें ना चाहते हुए भी खुल गयीं. कमरे में होने का तुम्हारा वो एहसास और तुम्हारी आवाज़ गायब हो गयी थी.

मुझे हमेशा ऐसा लगता है, जब भी मैं अकेले घर में रातों को रहता हूँ, तुम चुपके से मेरे पास आ जाती हो. मेरे से बातें करती हो, एक परछाई की तरह मेरे साथ साथ चलती हो. मेरे पूरे घर पर एक अधिकार सा जमा लेती हो. अकेले घरों में रहने पर शायद यूँ ही यादें परछाईं बनकर हमारे पीछे पीछे चलने लगती हैं. उनको रोकने वाला कोई नहीं होता. कोई बाउंड्री नहीं होती कि उन यादों को उन परछाइयों को रोक सके. वो परछाइयाँ तुम्हारे साथ रहती हैं, तुम उठते हो, बैठते हो, सोते हो, वो तुम्हारे साथ ही घर में मौजूद रहती हैं. तुम्हारे अलावा और कोई घर में होता है, तो ये परछाई भी दूर भाग जाती हैं, लेकिन जैसे ही तुम अकेले होते हो, ये परछाईं फिर से तुम्हारे साथ हो जाती हैं. कितनी बार सीढ़ियों पर, बालकनी पर खड़े होकर मैंने तुमसे बातें की हैं, बस तुम्हारे पास होने का एहसास भर होता था...कि तुम मेरे साथ खड़ी हो. जैसे उस रात हुआ था, मैं देर तक सो नहीं सका था...उठ कर अपने घर के बालकनी के पास आ गया, मुझे जाने क्यों ये भ्रम होने लगा कि तुम भी मेरे पास आकर खड़ी हो गयी हो. कितनी ही बातें की थी मैंने तुमसे. लोगों को ये बातें कहो तो तुम्हें पागल कह कर तुम्हारी बातों को हँसी में उड़ा देंगे. लेकिन मेरे साथ ऐसा ही होता है, तुम यूँ हीं मेरे साथ रहती हो हमेशा.

आधी रात का ही वो वक़्त भी होता है जब मुझे अजीब अजीब सपने भी आते हैं. उन सपनों का अर्थ क्या है ये मैं कभी समझ नहीं पाता. एक बार देखा था तुम्हें सपने में. मैं एक पुल पर खड़ा था. तुम पुल के दूसरे तरफ खड़ी थी. और वो पुल बीच से टूटा हुआ था. तुम तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा था. नीचे गहरी खाई थी और मैं सोच रहा था कि मैं किसी भी तरह तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ, लेकिन कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था. दूसरे तरफ से तुम्हारी घबराई हुई आवाजें सुनाई दे रही थीं. तुम रो रही थी. मुझे अपने पास बुला रही थी. तुम कह रही थी... आ जाओ वरना मुझे सब ले जायेंगे हमेशा के लिए... तुमसे बहुत दूर. मैं नीचे उतरने की कोशिश करता हूँ, और तभी एक बहुत बड़ा सा धमाका होता है.. और मेरी नींद टूट जाती है. मैं बहुत घबरा जाता हूँ उस सपने से. पास पड़े अपने मोबाइल को उठाता हूँ, वक़्त देखता हूँ तो सुबह के चार बज रहे होते हैं. सोचता हूँ कि अकसर तुम्हारे सपने मैं इसी वक़्त क्यों देखता हूँ?

मुझे हमेशा ये लगता है कि जितना ज्यादा मैं इन सपनों से डर जाता हूँ या घबरा जाता हूँ उतना कभी किसी भयानक सपने से, किसी भूत प्रेत वाले सपने से मैं नहीं डरा. जब भी तुमसे जुदा होने की बात किसी सपने में देखता हूँ, तुम्हें खुद से दूर जाते हुए देखता हूँ तो मैं बेहद डर जाता हूँ. हालाँकि अब डरने जैसी कोई बात नहीं रही, तुम बहुत दूर जा चुकी हो. लेकिन अब भी मैं बेहद डर जाता हूँ ऐसे सपनों से.

हर शाम को मन में यूँहीं जाने कितनी बातें चलने लगती हैं. तुम्हारी कही बात याद आती है, कि तुम लिख लिया करो अपने मन में चल रही बातों को. तुम्हारे पास लिखने का हुनर है, तुम लिखकर खुद के मन को थोड़ा शांत कर सकते हो, लेकिन उनके बारे में सोचो जो लिख नहीं पाते अपने मन की बात, ना किसी से कह पाते हैं. वो बस घुटते रहते हैं अन्दर ही अन्दर. तुमने फिर कहा था, कुछ और न मिले लिखने को, कुछ समझ में ना आये क्या लिखना है, तो जितनी भी गालियाँ तुम्हें आती हैं(वैसे तो कम ही आती हैं), मुझे सुना देना. खूब गरिया देना मुझे, देखना तुम्हारा मन एकदम शांत सा हो जाएगा.

7.1.17

अंगूर खाते हो।

उस दिन मौसम बहुत दिलचस्प था हल्की  ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और बारिश की भी शमशान बूंदे आसमान से टपक रही थी सच मै मौसम  बहुत शुहाना था उसको फोन किया तो बंद आ रहा था सोचा अकेला ही कही जाकर मौसम का आनंद लेना होगा बालकनी से  कमरे के अंदर दाखिल होते ही सीधा नजर घड़ी पर पढती है खैर काफी समय है  बाइक की चाबी उठाई और बाहर जाते टाइम एक बार फिर फोन ट्राई किया तब भी स्वीच आफ आ रहा था सोचा चलो खेल के मैदान मे जाया जाए बहा पहुंचा तो काफी लोग क्रिकेट और वालीबॉल खेल रहे है कूछ देर  मे उन बच्चो का खेल देखने के बाद बहा से चला जाता हू और बाइक पर बैठ कर पता नही क्या सोचने लगता हू धोड़ी देर बाद दिल कहता है कि फिर से फोन ट्राई करके देखो दूसरी तरफ दिमाग कह रहा है कोई फायदा नही लेकिन दुनिया बालो से  सुनते आ रहा था कि प्यार करो तो दिल से करो दोस्ती निभाओ तो दिल से और भगवान को पूजो तो दिल से और पता नही क्या क्या करो तो दिल तो मैंने सोचा क्यों ना दिल की ही बात मान ली जाए खैर फोन किया तो रिंग तो जा रही थी लेकिन फोन रिसीव नही हुआ फिर सोचा दिमाग की ही बात  मान लेता तो अच्छा था सायद दिल का सिग्नल सिर्फ इतना ही था कि उसका फोन आॅन हो गया है और दिमाग यह कह रहा होगा कि फोन कर भी लो तो फोन रिसीव नही होगा फिर  बाइक सटार्ट की ओर उसके घर जाना ही सही समझा जब उसके घर के पास पहुंचा तो घर के पास अपनी पढ़ोसन के साथ टहलती हुई अपने वालो को लहराते हुए  उसके साथ बाते करती धीरे धीरे चल रही थी  मै उसके पीछे बाइक पर सवार होकर देख रहा था  एक पल के लिए मुझे एक शरारत सूझ रही थी तब तक उस की नजर मुझ पर पढ़ चुकी थी  वो मुझे ऐसी पैनी नजरो से देख रही थी कि भगवान भी उसकी इन नजरो से डर जाए.....
इन पैनी नजरो का कारण भी मुझे पता था वो जो उसकी पडोसन थी उसके वारे मुझे बहुत कहानिया सूना चुकी थी कि वो बहुत चुगलखोर है और अगर उसको जरा भी भनक पढती की मै उसे से मिलने आया हू तो  उसके जरिए सारे मुहल्ले को खबर हो जाती खैर थोडी देर बाद वो मेरे पास आई और आते ही दो चार सूना दी लगभग चिल्लाते हुए कहा कि मै तुम्हे कब से इशारे कर रही थी कि जाउ अभी यहा से  मेरे पास अभी चुङेल खढी  है और अगर इस को जरा भी भनक लग जाती तो दुनिया हमे गूगल पर खोजने लगती ओर पेपर मै खबर छपती की इस  महीने सबसे ज्यादा बार खोजे जाने वाले प्रेमी ओर प्रेमिका ओर हम प्रेमी  प्रेमिका है भी नही खैर उस टाइम चुप रहना ही बेहतर समझा और कहा बैठो बाइक पर कही घुमने चलते है थोडी दूर एक छोटा सा पार्क था तो वही जाना बैहतर समझा और पार्क मै घुसते ही नजर लटकते हुए अंगूर के  गुच्छे पर पढी तो दिल से उसके लिए एक ही बात निकली
"अंगूर खाते हो"

5.1.17

तंग जिदंगी से आत्महत्या ही मेरी सहेली हैं।

कभी कभी जिंदगी मे मौत ही साथ देती है आत्महत्या सिर्फ नाकामयाबी की वजह नही होती बल्कि कई ऐसे कारन होते है किसी की अगर इज्जत मिट्टी मै मिल जाये तो आत्महत्या का शिकार दिखाई देता है कभी कभी लगता है कि सच मे अब मौत ही साथ देगी कई बार मां के साथ कहा सुनी या उसकी कोई बात मन को लग जाती है तो कई बार अपनी हाथ की नस काट कर जिदंगी को विदा करने की कोशिश करता हू लेकिन इतनी   हिम्मत जुटा पाना मुश्किल लगता है फिर कुछ देर बाद मन हल्का होता है तो मन कहता है कि तू बुजदिल है जो जीते जी मौत को गले लगा रहा है और मुझे एहसास भी हो जाता है कि मैं कितना गलत करने चला था कुछ लोग इस काम मैं कामयाब हो जाते होगे तो मुझे नही लगता कि उनकी आत्मा को शांति मिलती होगी उनकी आत्मा बस यहा बहा भटकती रह जाती  होगी.
उसकी आत्मा को पछतावा होता होगा कि मुझे ऐसा नही करना चाहिए था उनकी आत्मा को शांति मिलती होगी या नही वो तो भगवान ही जाने लेकिन जिदंगी के खेल भी तो देखो पता नही किस किस मौढ़ से गुजरना पढ़ता है कि आत्महत्या को अपनी  सहेली बना कर उसके पास जाना ही पङता है।खैर अगर मै इस पोस्ट को लिख कर आपका दिल छोटा  कर रहा हू तो माफ कर देना।

3.1.17

तुम्हारा खोया हुआ चेहरा याद आता है..

उस वक्त तुम बहुत खुबसूरत दिखती थी तुम्हारे बात करने का लहजा तुम्हारे पलके उठाने और झुकाने की अदा तुम्हारी चाल किसी सपनों की कहानी में दिखाए जाने वाली सोन परी जैसी थी तुम बड़ों की इज्जत करती थी बच्चों से प्यार करती थी. अजनबीयो का स्वागत करती थी. तुम्हारा शरमाना, नजरें चुराना, उदास होना, अस्क बहाना और मुसकुराह्ट को होंटो में दबाना किसी की भी हाथो से जान गिरा दे. मै बस तुम्हे समझाता ही रहता था कि लोगों के साथ ज्यादा चिपका मत करो लोग गलत मतलब निकाल लेते हैं तुम बड़ी भोली हो सबसे बातें मत किया करो कम बोला करो अजनबीयो को ऐसी बातें मत बताया करो लेकिन तुम मेरी एक नही सुनती थी. तुम जो भी करती थी चाहती थी कि में भी वैसा ही करू लेकिन मैं तुम्हारी ना दानियो मै नही पढने बाला था.....
तुम मेरी तरह जिंदगी को छुप-छुपकर नहीं जीती थी  जब सड़क पर चलती थी तो हंसते खिलखिलाते हुए उची  आवाज में बातें करते हुए चलती थी. मुझे याद है तुम हर मंडे को शिव मंदिर जाती थी सफेद रंग की सलवार कमीज जिस्पर हरे और केसरी रंग की हाथों से की गई  कढाई के फूल बने होते थे. ना जाने क्यो तुम अपना दुपट्टा घर पर ही भूल आती थी बाल गीले होते थे कमीज कि वाह नहीं होती थी गीले  बालों की वजह से कमीज गीली हुई होती थी  और उसकी गीली कमीज में से तुम्हारा गौरा   दूधिया जिस्म देखकर भगवान शिव में मेरी श्रद्धा और गहरी हो जाती थी. बचपन में मेरी मां ने मुझे जो परियों की कहानी सुनाई थी उस अफसाने पर अब यकीन सा होने लगता है वह लंबे लंबे कदम उठाती हुई भागी जा रही होती है सहेलियों को न्योता देती हुई बेवजह हंसती खिलखिलाती उड़ती हुई हाथों में पकड़ी पूजा की थाली में रखे फूलों और दूध के गिलास से छलकते टुकड़े और बूंदें पत्थर की सड़क पर भी उसके कदमों के निशान बनाते हुए जाते थे.  उसकी कलाई गहरे हरे रंग चूड़ियों के बोझ से कहीं टूट ना जाए यह फ़िक्र मुझे शाम तक चैंन से बठने नहीं देती अपने ख्वाबों खयालों में भी मुश्किल से बन सकने वाले चेहरे को देखने के लिए मैं भी हर संडे को अपने बेसमेंट में बने जिम में एक्सरसाइज करने की वजह छत पर चढ़कर डंड पेलता था जब गुजरती थी तो एक नजर मुझ गरीब पर भी डाल लेती थी. सिर्फ  बड़ी बड़ी मासूम आंखें और भोला सा चेहरा ही उसकी की इकलौती पहचान नहीं होता उसकी  बेचैनी से भरी चाल और मटकते कूल्हे भी तुमको जानलेवा बना रहे होते थे.....
जब तुम अपनी लंबी लंबी उंगलियों से अपने चेहरे पर गिरने वाली बालों की लटों को पकड़कर कान के पीछे रखती है तो ना जाने ऐसा क्यों लगता है कि इसके लिए मैं इश्वर से भी लड़ पडूंगा...गजले भी तो तुम जैसी खुबसूरत लङकियो पर लिखी जाती हैं अच्छे और बुरे शायर की पहचान भी यही से होती है कि क्या वो इनकी खूबसूरती को बयान कर पाता है अल्फाज नहीं मिलते जो इनके हुस्न को  कागज पर उतार सके. जो भी लिखो ऐसा लगता है तोहीन  लिख रहे है. मटक कर चलना बस यही जानती है. चेहरे को चांद और जुल्फों को बादल की तरह इस्तेमाल करना कोई तुम से सीखे. तुम्हारी वो मुस्कुराने की अदा. आंखों से बातें करना तुम्हारी वो ताकत थी जिसका तुम्हे  बिल्कुल भी पता नहीं था. तुम जहां भी जाती थी  छा जाती थी. तुम्हारे अंदर भीङ को अपनी तरफ खींचने का जन्मजात गुण होता था. जोश से भरी होती थी. खुदा आगे बढ़कर अपने लिए  मौके पैदा करती थी. लोगों की ना को हां में बदलना जानती थी....अब तुम्हारे अंदर ऐसा कुछ भी नही रहा पता नही तुम्हे किस की नजर लग गई.. भगवान से तुम्हारे उस खुबसूरत  चेहरे और व्यवहार  को  वापिस मांगता हू  कि भगवान चाहे तो मुझसे मेरी खुशी छीन ले लेकिन उसका चेहरा वापिस दे दे ।

2.1.17

तेरे मेरे प्यार की यादो मे बसा एक बुथ बगला

दिसंबर का महीना चल रहा था याद है वो दिन तुम्हे जब हम एक सुहानी सी साम को एक बगले के पास मिले थे. जिसे बहा के लोग उस बगले को बूथ बगले के नाम से जाना करते थे.  बगले के बारे मे चर्चा थी के बहा एक लड़की ने जिदंगी से तंग आकर आत्महत्या की थी. उस बगले के पास हम बाते कर रहे थे. बातो बातो मे मैंने तुमसे पुछा था. कि तुम मुझसे कितना प्यार करती हो तुम्हारा जबाब बस यही होता था कि अपनी जान से भी ज्यादा तब मैंने तुम्हे मजाक मै कहा था कि इस बगले के अन्दर जाकर दिखायो तो जाने.  तुमने थोडा मुसकुरा कर मेरे सर पर हाथ रखकर मेरा सर सहलाने लगी थी. उस बगले के अंदर बहुत ही डरावना सा दिर्स. था अंदर जाने से मे भी डर रहा था. मैंने तुम्हे डराने के लिए एकदम कहा था कि बगले की छत पर कूछ अजीब सा है. तुम डर के उपर देखने लगी थी तब्ही अचानक मेंने किस किया था. इस बात पर  तुम थोडा नराज जरूर हुई थी. लेकिन बातो बातो मै मना लिया था. बगले के सामने एक छोटा सा बगीचा था थोङा खामोश होकर हम उस बगीचे की खूबसूरती देखने लगे. हाथो मे हाथ डालकर और एक दूसरे की आखो मै आखे डाल कर उस बगीचे की तरफ बङे बगीचे मै बहुत ही सुहानी और ठंडी ठंडी हवा चल रही थी. बहा पर लगी एक बेंच पर हम बैठ गए सामने लगे बेर के पेङ पर कुछ गिलहरी को बेर खाते तुमने देखकर कहा था कि कास मै भी गिलहरी होती और इसकी तरह तुम्हे दिखा दिखा कर बेर खा रही होती.
सामने से एक प्रेमी जोङा आ रहा है दोनो के जींस पहनी हुई है लङकी के वाईट कलर का टोप पहना है तुम्हारे सामने भी मै तुमसे नजरे चुरा कर उस लङकी की तरफ देख रहा था. लोग अक्सर साम को उस बंगले के पास आया जाया करते थे. हमै बाते करते करते अन्धेरा हो गया था मोबाइल मै टाइम देखा तो 6:48 हुए थे खैर बहा पर भीङ बढऩे लगी फिर बहा से कुछ दूरी पर काफी सांफ थी हम टहलते हुए बहा पहुंचे और काफी के कप पकङ लिए. मेरा कप तो खाली हो चुका था. एक तुम थी जो कप खाली करने का नाम ही नही ले रही थी. और मुझे चिढा चिढा कर धीरे धीरे पीने लगी मन तो कर रहा था कि कप छीन कर चेहरे पे मारो पर इतनी हिम्मत जुटा पाना मुश्किल था. तुम हो भी तो इतनी ताकत वर थी कि मुझे सबक सिखाना तुम्हारा वाये हाथ का खेल था. कही जाकर आधे घंटे मे कप खाली किया. काफी सोंप से बाहर निकलते ही घर जाने की हडबडी मचा दी. ओर एक किस देकर कहा गुड वाये "वायो" गुड वाये कहने का सटाय्ल कितना कुय्ट था तुम अक्सर कहा करती थी कि मै तो बचपन से ही सटाय्लीस और कुय्ट थी. तुम जा चुकी थी और मै बही बाइक के पास खढ़ा खढ़ा गहरी सोच मै. चला गया कुछ देर टठिलने के बाद मै भी बहा से चला गया....

Princess

(In.. Dream...) Heeyy  Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h k...