तुम्हारे मेरे पास होना बहुत मुश्किल जान पड़ता है
काश ! तुम मेरे पास होते !!
चूँकि ,
तुम मेरे पास नही हो ,
इसलिए मैं तुम्हे रोज लिखना चाहती हूँ -
अपने दिल के हालत , अपने हर ज़ज्बात .....
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हर रात जब मेरी आँखों में रतजगे का सैलाब उमड़ता है -
उन लहरों में मुझे डूबते-उतराते सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा दिखता है !
क्यों मैं तुम्हारे अभिमान को नही समझना चाहती हूँ ,
तुम न भी बुलाओ फिर भी क्यों तुम्हारे करीब आना चाहती हूँ ...
आखिर क्यों ??
आखिर क्यों तुम्हारी उत्तापहीन आँखे मेरे प्यार से नम नही होती ?
हालांकि मैं तुम्हे कुछ ही दिनों से जानती हूँ ,
लेकिन ऐसा क्यू लगता की जैसे मैं तुम्हे हजारो वर्षो से पहचानती हूँ ?
हम कब और कैसे मिले ,
कुछ ख़ास याद नही ........
बस इतना ही , की जैसे किसी जलती दुपहरिया में
मेरी हथेलियों पे छाँव लिख दिया हो !
उस वाकहीन नि:शब्दता में मैं सिर्फ तुम्हे देखती ही रह गई थी !
जैसे की हम अनंत काल से एक-दूजे की तलाश में भटक रहे हो ..
और एक दिन हम मिल गए और एक-दूजे को पहचान लिया ....
न न ... किसी भूमिका की जरुरत ही ना पड़ी !!
हमने अपने अंतस में रखी तस्वीरों से एक-दूजे को मिलाकर देखा --
हाँ ..हाँ .. यह वही तो है ,
अपने निर्जन सपनो से जिसे रचा है ...
जिसे हमने अपने मन के अन्दर रचा-गढ़ा है ....!
इसलिए बिना कुछ कहे -सुने नि:शब्द मुद्रा में,
हमने एक दूजे की हथेली पर लिख दिया अपना नाम !!!!