10.5.22

Magician

दोपहर बीत चली थी लेकिन बारिश थी
कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी. लड़का
अपने कमरे में बैठे बारिश के रुकने की
प्रतीक्षा कर रहा था. दो दिन से तेज़
ज़ुकाम और हलके बुखार की वजह से वो घर में
कैद था और इन दो दिनों से लगातार
बारिश हो रही थी. अपने बालकनी में बैठे
बारिश की बूँदों को देख वो सोच रहा
था कि कभी जनवरी की बारिश कितनी
ख़ास होती थी लेकिन अब तो जैसे जनवरी
की बारिश भी कोई मायने नहीं रखती.
पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ बदल गया था.
कई यकीन, कई सपनें टूट गए थे. एक के बाद एक
उसे अपनी हर नाकामी याद आ रही थी.
दिन में कई बार उसने सोचा कि घर पर बात
कर ले, लेकिन वो जानता था कि घर पर
उसकी हलकी बिमारी की खबर भी सबको
बेचैन कर देती है. अपने घरवालों को वो अब
और कोई तकलीफ नहीं देना चाहता था.
वो उस लड़की से भी बात करना चाहता
था जो उसके सुख दुःख की साथी थी.
लड़के के माँ-बाप, छोटे भाई और बहन के
अलावा पूरे दुनिया में एक वही तो थी जो
उसकी हर बात समझती थी. लेकिन जाने
किस हिचक से या अनजाने डर से वो उसे
फोन नहीं कर पाया था.
दो दिन पहले उसकी लड़की से बात हुई थी
और तब लड़की का मन बेहद अशांत था.
लड़की के परिवार में उन दोनों को लेकर खूब
हंगामा हुआ था. लड़की उस रात फोन पर
बहुत देर तक रोती रही थी और बस यही
दोहराते रही थी – “आई विल डाई
विदआउट यू....एंड आई मीन इट!” पूरे दिन लड़के
के मन में भी बस यही पाँच शब्द घूमते रहे थे जो
लड़की ने दो रात पहले कहे थे और जिन्हें वो
तोड़ मरोड़ के पूरे दिन दोहराता रहा
था...आई विल डाई.....विदआउट
यू.....विदआउट यू...आई विल डाई.
शाम होते होते लड़के को उसका अकेलापन,
उसकी नाकामी और लड़की के कहे शब्द इस
कदर बेचैन करने लगे कि घर में और रुकना संभव न
हो सका. वो बारिश में ही घर से बाहर
निकल आया था. बारिश में भीगता हुआ
वो सड़कें पार करने लगा. एक जगह से दुसरे जगह
वो घूमता रहा. घर से बाहर, सड़कों पर उसे ये
तसल्ली थी कि वो अकेला नहीं है. बहुत से
लोगों के बीच में वो भी एक है. देर रात तक
वो उन भीड़ भरी सड़कों पर इधर उधर
निरुद्देश्य घूमता रहा और जब घर लौटा तो
ठण्ड से उसका शरीर काँप रहा था.
कमजोरी और थकान इस कदर हावी हो
गयी थी उसपर कि वो बिना कुछ खाए सो
गया.
सुबह जब आँख खुली उसकी, तो उसका पूरा
शरीर बुखार से तप रहा था. उसमें इतनी
ताकत भी नहीं बची थी कि बिस्तर से उठ
कर वो पानी तक पी सके. शाम के अपने
पागलपन के लिए वो खुद को कोसने लगा
था. रात सड़कों पर घुमने से कुछ देर के लिए
जिस अकेलेपन से उसे छुटकारा मिला था
उस अकेलेपन ने उसे फिर से जकड़ लिया था.
दिन भर के बुरे ख्याल फिर से आने लगे थे. वो
ये सोचते ही काँप गया कि इस शहर में वो
अकेला है..बिलकुल अकेला. उसे अगर कुछ हो
भी जाए तो भी उसकी मदद करने कोई नहीं
आने वाला.
उसे अपने एक चाचा की याद आने लगी, जो
काफी साल पहले इस दुनिया से जा चुके थे.
तब वो काफी छोटा था. उसे बहुत दिनों
तक ये लगता रहा था कि चाचा की मौत
बुखार से नहीं बल्कि अकेले रहने से हुई थी. वो
भी लड़के की तरह अकेले रहते थे. उसने सोचा जो लोग
अकेले कमरे में मरते हैं वो कितने बदनसीब होते
हैं कि आखिरी वक़्त कोई भी उनके पास
नहीं होता. ये सोचते ही वो एकदम
आतंकित सा हो गया. अकेलेपन के बारे में तो
लड़के ने पहले भी कई बार सोचा था लेकिन
मौत के बारे में उस दिन उसने पहली बार
सोचा था.
सामने टेबल पर रखी लड़की की तस्वीर पर
उसकी नज़र गयी तो उसे याद आया पहले जब
कभी ऐसी बातें वो मजाक में भी लड़की
को कह देता तो वो उससे रूठ जाया करती
थी. वो तो शायरी और कविताओं में भी
मौत जैसे शब्दों को झेल नहीं पाती थी और
चिढ़ कर कहती कि ऐसे नेगटिव शब्दों का
इस्तेमाल करने वाले कवि और शायरों को
जेल में बंद कर देना चाहिए. पॉजिटिव
थिंकिंग की वो खुद को एक मिसाल
समझती थी. ऐसा था भी. फुल ऑफ़ लाइफ
लड़की थी वो. लेकिन वही फुल ऑफ़ लाइफ
लड़की ने उससे कहा था “आई विल डाई
विदआउट यू”.
लड़के को बहुत पहले का एक दिन भी याद
आया जब वो बहुत बीमार था और लड़कीमजाक में कहा था “ये
बुखार तो मेरी जान ले लेगी”. ये सुनते ही
लड़की ने उसे दो तीन मुक्के जड़ दिए थे और
गुस्से में कहा था, ‘बीमार हो और तब भी
मार खाने की तुम्हारी तलब शांत नहीं
होती’. उस एक छोटे से मजाक से लड़की पूरे
दिन रूठी रही थी.
लड़के को अक्सर लगता था कि लड़की के
पास कोई जादू का पिटारा है. उस दिन
जब वो अपने घर में बीमार पड़ा था तब
लड़की ने इरिटेट होकर कहा था, "कितने
प्लान बनाये थे हमनें आज के लिए और तुम
बिस्तर पर पड़े हो...रुको मैं तुम्हें ठीक करने
का कुछ उपाय करती हूँ". लड़के को इस बात
पर हँसी आ गयी थी.. “तुम क्या करोगी?
तुम कोई डॉक्टर थोड़े हो?” लड़के ने कहा.
लड़की फिर बेपरवाह ढंग से हँसते हुए कहने
लगी.. “मैं डॉक्टर नहीं...मैजिशियन
हूँ....मैजिशियन. मैं वो भी कर सकती हूँ जो
डॉक्टर्स नहीं कर सकते...”
ये कहते हुए उसने लड़के के माथे और गालों को
ऐसे सहलाया जैसे वो कोई फ़रिश्ता हो
और उसके बस छू लेने से कोई चमत्कार होगा
और लड़के की बीमारी गायब हो जायेगी.
उस वक्त लेकिन लड़के को सही में ऐसा महसूस
हुआ कि जैसे लड़की की हाथों की
मसीहाई धीरे धीरे उसके समूचे शरीर में उतर
रही है और वो अब ठीक है. उसे उस दिन ये
यकीन था कि उसका बुखार दवा खाने की
वजह से नहीं बल्कि उस लड़की की वजह से
उतरा था.
शायद टेलीपैथी जैसी कोई चीज़ होती
जरूर है. लड़का अपनी उस मैजिशियन को
याद कर ही रहा था कि तभी फोन की
घंटी सुनाई दी. लड़के ने हड़बड़ा के अपना
मोबाइल देखा. लेकिन मोबाइल खामोश
था, उसपर कोई कॉल नहीं था.. लड़के की
नज़र सामने खुले लैपटॉप पर गयी तो वो चौंक
गया. लैपटॉप पर लड़की का विडियो
कॉल आ रहा था.
लड़के को याद आया कि हमेशा की तरह
रात में वो लैपटॉप बंद करना भूल गया था
और विडियो चैट का एप्लीकेसन लॉग इन
था. लड़की दुसरे टाइम जोन के शहर में रहती
थी. जब लड़के के शहर में सुबह होती तो
लड़की के शहर में रात. लड़की अक्सर इस वक़्त
लड़के को विडियो कॉल करती थी.
विडियो कॉल से दोनों को तसल्ली
रहती कि वो दोनों दूर नहीं हैं. लड़की
कहती लड़के से कि तुम्हें देखकर सोती हूँ तो
मुझे बड़ी अच्छी नींद आती है और लड़का
कहता, कि तुम्हें सुबह देख लेता हूँ तो मेरा
दिन बहुत अच्छा हो जाता है.
लैपटॉप पर लड़की का कॉल देखकर लड़का
असमंजस में पड़ गया कि वो क्या करे? वो ये
नहीं चाहता था कि लड़की उसे इस हालत
में देखे. उसने सोचा कि वो कॉल रिसीव न
करे और बाद में बहाना बना दे कि वो सो
रहा था. लेकिन लड़की लगातार कॉल कर
रही थी. वो जानता था कि उसने बहाना
बनाया तो लड़की उसका झूठ ताड़
जायेगी. खुद को थोड़ा संभाल कर, हिम्मत
जुटा कर उसने कॉल रिसीव किया.
लड़के ने पूरी कोशिश की थी कि वो
अपना हाल छुपा ले, लेकिन उसकी एक झलक
से ही लड़की ने सब समझ लिया था. दो
दिनों से लड़की वैसे ही परेशान थी और अब
लड़के की ऐसी हालात देख कर वो एकदम टूट
गयी. लड़की को ये समझते देर न लगी कि दो
दिन पहले उसने जो डिप्रेसिंग बातें की थी,
उस वजह से लड़के की ऐसी हालत हुई है.
हालाँकि लड़के ने उसे खूब समझाने की
कोशिश की कि वो गलत सोच रही है और
बारिश में भीग जाने की वजह से उसे बुखार
चढ़ आया था. लड़की लेकिन जानती थी
कि बुखार में जहाँ अधिकतर लोग बिस्तर पर
पड़े रहते हैं वहीँ लड़का आराम से घूमते रहता
था.
लड़की कहती नहीं थी लेकिन लड़के के
अकेलेपन को वो अच्छे से समझती थी..तभी
तो वो दो दिन से इस गिल्ट में रही कि उसे
लड़के से ऐसा नहीं कहना चाहिए था. वो
जानती थी कि ऐसी बातों को लड़का
काफी गंभीरता से ले लेता है और फिर
अक्सर उसकी तबियत बिगड़ जाती है.
लड़की ने धीमी आवाज़ में लड़के से कहा
"सुनो, मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था".
लड़के ने लड़की को फिर तसल्ली देनी चाही
कि वो गलत सोच रही है और उसकी बातों
का उसपर कोई असर नहीं हुआ था.
लड़की लेकिन इस बार थोड़ी उखड़ सी गयी
"तुम क्या सोचते हो कि मैं कुछ नहीं
जानती..सब जानती हूँ मैं कि कौन सी
बातें तुमपर कैसे असर करती हैं. तुम कैसे रहते
हो...वो भी जानती हूँ मैं. लेकिन सुनो...ऐसे
जिया नहीं जाता..इतनी तकलीफ किस
लिए? मैं नहीं जानती कि तुम अक्सर पूरी
पूरी शाम सड़कों पर बस इसलिए बिता देते
हो ताकि घर के अकेलेपन और सूनेपन से बचे
रहो. तुम ये सब क्यों सहते हो? सुनो..तुम
वापस अपने घर क्यों नहीं चले जाते..कम से
कम मुझे तसल्ली रहेगी. वरना जब तक ऐसे
रहोगे मैं भी चैन से नहीं रह पाऊँगी.." कहते
हुए लड़की का गला रुंध आया था.
लड़के की आँखें भी भींग आई थी. वो
जानता था कि लड़की उसकी फ़िक्र
करती है. वो नहीं चाहता था कि लड़की
उसकी तकलीफों से परेशान हो इसलिए वो
जान बूझकर लड़की से कुछ भी नहीं कहता
था. लड़की लेकिन फिर भी समझ समझ
जाती थी. ऐसे समय में लड़का हमेशा चुप हो
जाया करता था और लड़की असहाय सा
महसूस करती कि वो लड़के के पास नहीं है.
लड़की को लड़के की बीमारी कि उतनी
चिंता नहीं होती थी, वो जानती थी
कि लड़का खुद का ख्याल रख सकता है.
लेकिन लड़के को जब भी यूँ अकेलेपन का
एहसास होता, बुरे ख्याल जब भी लड़के को
परेशान करते तो लड़की को हमेशा लगता
कि काश वो उसके पास, उसके साथी
होती.
लड़की बार बार अपनी उँगलियों को
वेबकाम तक ले जा रही थी. वो लड़के को
छूना चाहती थी. पागल थी वो. बहुत पहले
कभी किसी दिन पार्क में बैठे हुए उसनें लड़के
की हथेलियों को खुद की हथेलियों से
लॉक कर लिया था और अपना दुपट्टा लपेट
दिया था इस उम्मीद के साथ कि दोनों के
हाथ हमेशा के लिए जुड़ जायेंगे और जब उसने
दुपट्टा हटाया और हथेलियाँ अलग हो गयी
तो वो उदास हो गयी थी..और आज वो
चाह रही थी कि किसी तरह कोई
चमत्कार हो जाए और वो इस वेबकैम से हाथ
निकाल ककर लड़के को छू सके.
हर बार जब वो अपने इस पागलपन में असफल
हो रही थी, इरिटेट होकर लड़के से कहने
लगी “सुना है किसी सॉफ्टवेर इंजिनियर ने
अपनी गर्लफ्रेंड को ढूँढने के लिए एक सोशल
नेटवर्किंग साईट ही बना दी थी.तुम भी मेरे
लिए कोई ऐसी तकनीक का अविष्कार
क्यों नहीं कर देते कि मैं जब चाहूँ तुम्हारे
पास पहुँच सकूँ.?
वो ऐसी सिचुएशन तो नहीं थी कि लड़के
को हँसी आये लेकिन लड़की की इस प्यारी
नादानी पर उसकी हँसी छुट गयी.."मैं
उतना क्वालफाइड नहीं हूँ. तुम कोशिश
करो. इंजीनियरिंग की डिग्री तो तुम्हारे
पास भी है.."
लड़के के ऐसे हलके फुल्के मजाक से लड़की अन्दर
ही अन्दर खुश हुई, लेकिन चेहरे पर नकली
गुस्सा दिखाते हुए उसनें लड़के को डांटा..
"तुम्हें तो अच्छा लगता है न मुझे यूँ परेशान
होता देखकर? तभी तो हँस रहे हो. खुद अकेले
रहकर बेवजह की बातें सोचते हो और मुझे
उदास कर देते हो. पता है तुम्हें आज माँ के
बर्थडे की पार्टी थी और सजने-सँवरने में मुझे
पूरे दो घंटे लगे थे. सबने कितना कॉम्प्लीमेंट
भी दिया कि बहुत सुन्दर दिख रही हूँ और
तुमनें रुलाकर देखो सब बर्बाद कर दिया.
सोचा था तुम्हें आकर अपनी ये नयी साड़ी
दिखंगी. तुमसे परसों रात के लिए माफ़ी
भी तो मांगनी थी...लेकिन तुम..तुम तो खुद
की ऐसी हालत बनाये हुए हो कि क्या कहूँ
मैं?और अब हँस रहे हो? बेशर्म कहीं के..
बीमार हालत में भी लड़का हड़बड़ा गया.
वो तुरंत माफी माँगने के मोड में आ गया.
“अच्छा चलो माफ़ कर दो और ये गुस्सा
छोड़ो.अब नहीं सोचूँगा ऐसा वैसा कुछ
भी. अब बस तुम्हारे बारे में सोचूँगा...ठीक?
देखो तुम आज कितनी प्यारी लग रही
हो..ये नाराज़गी तुम्हारे इस प्यारे चेहरे पर
बिलकुल सूट नहीं करती.” लड़के ने लड़की को
मनाने की पूरी कोशिश की. लड़की लेकिन
उसे इतनी आसानी से माफ़ करने के मूड में नहीं
थी. अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा
कर के वेबकैम के एकदम नज़दीक अपने चेहरे को
लाकर उसने गुस्से में कहा "ना..मत सोचो मेरे
बारे में.. तुम्हें तो मुझसे नहीं, अकेलेपन से प्यार
है न...और नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी
तारीफ़. .तुमने तो कसम खा रखी है न कि
बिना मुझसे डांट सुने मेरी तारीफ़ नहीं
करोगे...अभी भी और डांट सुनने का इरादा
है या चुपचाप दवा खाओगे मेरे सामने?
जानती हूँ मैं कि तुमनें दवा नहीं खायी
होगी अब तक".
लड़का मुस्कुराने लगा. थोड़ा फ़िल्मी होते
हुए उसने कहा “मुझे वैसे दवा खाने की अब
क्या जरूरत? तुम जो हो मेरे सामने...देखना
मेरी मैजिशियन सब ठीक कर देगी. ये बुखार
कहाँ टिक पायेगा मेरी मैजिशियन के
सामने? है न? देखना डर के भाग जाएगा
बुखार”. लड़की के गुस्से वाले चेहरे पर अब
हलकी मुस्कान उभर आई थी..अपने बारे में
ऐसी बातें सुनकर वैसे भी उसका चेहरा एकदम
खिल जाता था. फिर भी ऐटिटूड दिखाते
हुए उसने कहा “मस्का लगा रहे हो मुझे?”
“हाँ बिलकुल...तुम्हें तो मस्का बहुत पसंद है
न?” लड़के ने उसे छेड़ते हुए कहा.
“हुहं...व्हाटेवर......” लड़की ने कन्धों को
उचकाकर, लड़के के सवाल को गोल कर
दिया.
लड़के को लगा जैसे उसके सामने फिर से
उसकी वही पुरानी दोस्त खड़ी है जो बात
बे बात पर गुस्सा हो जाया करती थी और
लड़के को उसे मनाने के लिए फिर कितने जतन
करने पड़ते थे. लड़के को लगा जैसे दो दिन का
सारा बोझिलपन, अकेलापन और उसके अंदर
का भारीपन धीरे पिघलने लगा है. उदासी
के बादल उसके चेहरे से तो लड़की को देखते ही
छटने शुरू हो गए थे, लेकिन अब उसे लगा जैसे
उसकी तबियत भी ठीक है और वो हल्का
महसूस कर रहा है. उसे लगा कि ये लड़की सच
में उसकी मैजिशियन है जो सब कुछ ठीक कर
देती है...


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(In.. Dream...) Heeyy  Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h k...