मैं अकेला रहता.. हूँ
आते हैं लोग जाते हैं...
मैं अकेला रहता हूँ..
साथ कोई चलने वाला नहीं...
जो साथी है वो साथ नहीं...
.....है दूर कहीं
अकेला ही इस भीड़ से झूझता हूँ
...मैं अकेला रहता हूँ...
कहने को महफिल सजी रहती है आसपास...
सामिल होके भी में उनमे सामिल नहीं...
मैं अकेला रहता हूँ...
कहते है तन्हाई सिखाती है बहुत कुछ..
पर रूलाती भी है अक्सर..
आंसू देखो रोज़ लड़ते है मुझसे रूठ भी जाते हैंकभी...
.........पूछते हैं...
क्या कोई भी नहीं यहाँ क्या?..
समझा नहीं पाता उन्हें क्यूँ मैं अकेले रहता हूँ...
हँसते चेहरे के पीछे भी...
लाखो छुपे आंसू होते हैं..
यूँ तो दीखते नहीं उजाले में..
अंधेरो से प्यार करते हैं....
लोग समझेंगे नहीं...
देख नहीं पातें हैं की मैं अकेला रहता हूँ..
खुशी दो पल मिल जाती है
..तो अहसास होता है की साँस अभी बाकी है..
अपने आप को आईने में देख नहीं पाता आजकलडरता हूँ कहीं आईने को भी सिकायत न होमुझसे..
की क्यूँ मैं अकेला रहता हूँ....
दर्द है पर खुशी मिलती है...
खुद से जब दो बातें करता हूँ,..
..अच्छा लगता है...
समझाता हूँ दिल को कभी कभी..
ये सोनेपन का आलम मुख्तसर..
बस इंतज़ार है कोई ख़ास के वापस आने है फिरनहीं कहूँगा
....की मैं अकेला रहता हूँ...