22.10.18

closed room....ugg yeh ratein

इन दिनों मैं बहुत कुछ ऐसा सोचने लगा हूँ जो मैं नहीं चाहता कि तुम पढ़ो, कुछ रद्दी से पड़े पन्नों पर लिखकर उसे फाड़ कर फेक देता हूँ.... कभी हमारे बीच में की गयी कुछ अनकही बातों के सिरे को भी पकड़ो तब भी उससे नयी कोई बात नहीं निकलती... ससर गाँठ की तरह सारी पुरानी बातों के गिरहें खुलकर बस सीधा सन्नाटा बच जाता है... मैं फिर से ख़ानाबदोश होने लगा हूँ, दिन भर बेफालतू इधर उधर बौखलाया फिरता हूँ ... इंसान चाहकर भी अपनी परछाईयों से नहीं भाग सकता, शायद इसलिए मुझे अंधेरा अच्छा लगता है... किसी से नज़र चुराने की ज़रूरत नहीं है, खुद से खुद की बातों में खो जाना ही असीम सुख है... कितना अच्छा होता न अगर अंधेरा ही सच होता, इस तेज रौशनी में मेरी आखें चौंधिया जाती है, दिल में जलन होती है सो अलग... 

शाम को इस अंधेरे से कमरे में बैठकर अपने अंदर की रगड़ सुन रहा हूँ, दिमाग बार-बार दिल को कहता है आखिर ज़रूरत क्या थी इश्क़ करने की, अब भुगतो... और दिल चुपचाप खुद को एक कमरे में बंद कर लेता है, मुझे डर लगता है कहीं यूं अकेले रहते रहते मैं किसी बंद कमरे में तब्दील न हो जाऊँ... 

रात एक माचिस है, 
और तन्हा होना एक बारूद 
तेरी याद एक रगड़ है, 
तीनों गर मिल जाएँ 
तो मेरी धड़कन 
राख़ हो जाती है जलकर....

मेरे बीते हुए पल....


काश मेरे बीते हुए पल मेरे पास होते हैं... आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है... मैं नहीं जानता कि मेरे साथ ही ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी ऐसा होता होगा
इन दिनों ऐसा लगता है जैसे मैंने अपना वजूद एक बार फिर से खो दिया है, चाहे कितना भी खाली वक़्त मिल जाये समझ नहीं आता कि क्या करना है... कितनी ही बार पूरा दिन ऐसे ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया है... पता नहीं क्यूँ मुझे कोई इतना अच्छा नहीं लगता कि उससे बात की जाये, लगता है अकेले ही वक़्त बिता लिया जाये तो बेहतर है... इतने सालों की जद्दोजहद के बाद जमापूंजी के रूप में बस कुछ खूबसूरत यादें हैं, अब तो उनको याद करके भी आँसू ही आते हैं... "डैडी" फिल्म में एक संवाद था न कि "याद करने पर बीता हुआ सुख भी दु:ख ही देता है...." मैं शायद उम्र के ऐसे दौर पर हूँ जब मूड स्विंग्स होते हों, लेकिन जिस रंज और दर्द के शहर में अपना वजूद तलाश रहा हूँ वो मुझे अपने ब्लॉग या डायरी में ही मिलता है.... कितनी अजीब बात है मेरे ब्लॉग का पता हर किसी के पास है अलबत्ता यहाँ कोई अपना दर्द पढ़ने नहीं आता, शायद कुछ लोग ऐसे होंगे जो इस दर्द में अपना दर्द तलाश कर दो आँसू बहा लिया करते होंगे... मैं भी तो कितनी ही बार निकलता हूँ इधर उधर के बेरंग पते पर खुद का दर्द तलाशते हुये... गम के खजाने तो हर किसी के होते हैं न, बस सबके सन्दूक का रंग अलग अलग होता है... मेरी सन्दूक का रंग स्याह सा पड़ गया है... कल सुबह से मुझे एक ही खयाल आ रहा है कि मुझे एक स्वेटर बुनना चाहिए, माँ खाली होती थी तो यही करती थी पहले... पर वो भी बुनू तो किसके लिए... 

कहते हैं, रोने से जी हल्का हो जाता है पता नहीं मेरा क्यूँ नहीं होता... हाँ जब रो चुकता हूँ तो किसी से मिलने का दिल नहीं करता, आईने के पास से भी गुज़रता हूँ तो वो चीख चीख कर मुझसे मेरा पुराना चेहरा मांगता है... ऐसे में बस एक ही चेहरा है जो मुझे सुकून देता है, बस उसे न ही कभी इस बात का इल्म होता है न ही होगा कभी.... काश कभी जैसे मैंने ज़बरदस्ती उसकी उदासी में खलल डाल कर उन्हें अपना बनाया था वो भी इसी तरह ज़बरदस्ती मुझे मेरे होने की याद दिला दे पर उसकी बेखबरी मेरे हर खाली दिन के ऊपर लिपटी हुयी होती है... 

वक़्त से बड़ा शिकारी कोई नहीं होता... जो सबसे बेहतरीन लम्हें होते हैं न वो उसका शिकार करता है, फिर उसकी खाल को सफाई से उतार कर अपने ड्राइंग रूम में सज़ा लेता है... हम उस खाल को देखकर उसपर गर्व तो कर सकते हैं है लेकिन उस लम्हों की खाल के पीछे के तमाम अतृप्त इच्छाएँ नहीं देख पाते... मैंने तो कभी किसी चाँद-सितारे की मन्नत भी नहीं मांगी बस कुछ ख्वाब थे जो दर-दर टुकड़े हो चुके हैं... काश वो ख्वाब मैं दोबारा देख सकता तो उसके ऊपर दाहिनी ओर छोटा सा स्टार लगा देता 'टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई' वाला लेकिन वक़्त के पहियों में रिवर्स गियर जैसा कुछ नहीं होता... 

सुबह से मोबाइल सायलेंट करके उसे पलट कर रखा हुआ है लेकिन हर दो मिनट में पलट के देखता हूँ कि शायद उसके आने की आहट सुनाई दे जाये... लेकिन आज का दिन ऐसे गुज़रा जैसे किसी अंधे के हाथ की दूरबीन.... बेवजह, आज का दिन नहीं भी आता तो क्या फर्क पड़ता था....
बारिश का मौसम इस धरती के ज़ख़्मों पे मरहम सा लगता होता होगा न, लेकिन जलते हुये मांस पर पानी डाल दो तो उसके धुएँ में आस पास की सारी गंध खो जाती है... 


ऐसा लगता है जैसे ये ज़िंदगी कई करोड़ पन्नों का एक उपन्यास है जिसकी कहानी बस उसके आखिरी पन्ने पर लिखी है, बाकी सारे पन्ने खाली और हम सीधा आखिरी पन्ने तक नहीं जा सकते.... एक एक पन्ना पलटना ही होगा हमें....

19.10.18

सपने

सपने या तो अच्छे होते हैं या फिर बुरे पर मेरे सपने इन दायरों में नहीं आते मेरे सपने खौफनाक होते हैं मेरे सपने मुझे उन हादसों से रूबरू करवाते हैं जिनके पीछे दर्दनाक इतिहास होता है जैसे की ये घर  मुझसे पहले इस घर  में रहने वाली एक लड़की की गला घोंटकर हत्या की गई थी मुझे आज भी उस लड़की की चीखें सुनाई देती है रात दर रात उसकी मौत का आधा अधूरा मंजर मेरे सपने में और साफ होता जा रहा है अब तो जागते हुए भी ऐसा लगता है जैसे कोई आस पास है पर मैं बस यही उम्मीद करता हूं कि बुरे सपनों का यह दौर  बस यहीं तक सीमित रहें                                                                                              कही मेरे सपने हकीकत बनकर मेरे सामने ना आ जाए बस अब ये घुटन और सही नहीं जाती इस से पहले की मेरे लिए हालात और बिगडे मेने ये घर छोड देने का फैसला किया है इनसान अपने दुश्मनों से भाग सकता है पर भला कोई अपने ख्वाबों से दूर कैसे भागे  मेरे दोस्तों को लगता है कि यह महेश मेरा वहम है     पर यह सच नहीं है मैं शायद इस मामले में कभी किसी को यकीन दिला पाउ पर उन्होंने मुझे इस बात का यकीन दिला दिया है कि  "आई एम डिप्रेस" में उम्मीद करता हूं कि यह सपने मेरा पीछा करना छोड़ देंगे में एक नई जिंदगी की शुरुआत एक नई जगह पर करो जहां की हवाओं में पहले की तरह किसी बुरे हादसे की गंद ना हो  जहां में खुलकर सांस ले सकूं बगैर  किसी खौफ  के ।                                                            लगता है खौफ का साया अब  भी मेरे साथ है यहां आने से पहले उस जगह  की जो तस्वीरें मैंने अपने मन में देखी थी वो सब वैसे ही यहा   हूबहू  मौजूद हैं पर कुछ पहलू ऐसे हैं जो अब  भी  मेरी समझ के बाहर है जैसे कि मेरे कंधे पर खून की बूंदों का गिरना मेरे रूम में एक डरावनी  शक्ल की लड़की का झूले पर बैठे रहना क्या इन्हे भी मैं अपने वहम  का दर्जा देकर भूल जाओ "और" और "माया" माया तो जिन्दा है फिर कल रात जो मैंने उसके बारे में देखा उसका क्या मतलब हो सकता है जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि हम सब पर कोई बड़ी मुसीबत आने वाली हैं और  मैं एक नई शुरुआत की राह में हूं इस उम्मीद में कि खौफ  का साया मेरी परछाई ना बन जाए और अगर इस खौफ  के साथ एक  उमर भर का रिश्ता लिखा ही है तो मैं उसके साथ जीने की आदत डाल सकूं।...

Princess

(In.. Dream...) Heeyy  Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h k...