24.9.20

Pyar Ek Safar Hai Aur Safar Chlta Rehta hai

 



पार्क में बैठना कितना सुकून देता है, बस थोड़ी देर ही सही... मुझे भी अच्छा लगता है बस यूँ ही बैठे रहो और आस-पास देखते रहो... कई तरह के लोग... हर किसी की आखों से कुछ न कुछ झांकता रहता है... ढलती हुयी शाम है, हल्के हल्के बादल है... ठंडी हवा चल रही है... पास वाली बेंच पर कई बुज़ुर्ग आपस में कुछ बातें कर रहे हैं... ऊपर से तो वो मुस्कुरा रहे हैं लेकिन उनकी आखें सुनसान हैं... उस सन्नाटे को शायद शब्दों में उतारना मुमकिन न हो सके.... उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर सभी के जहन में "क्या खोया-क्या पाया...." जैसा कुछ ज़रूर चलता होगा... कितनों के चेहरे पर इक इंतज़ार सा दिखता है... इंतज़ार उस आखिरी मोड़ का... जहाँ के बाद क्या है किसी ने नहीं देखा... किसी ने नहीं जाना... 
उसकी ठीक दूसरी तरफ प्ले ग्राउंड में कुछ बच्चे खेल रहे हैं, उनकी दुनिया में कोई परेशानी नहीं है...परेशानियां है भी तो कितनी प्यारी-प्यारी सी... किसी की बॉल किसी दूसरे बच्चे ने ले ली, किसी के पैरों में थोडा सा कीचड लग गया... किसी को आईसक्रीम खानी है... उन छोटे छोटे बच्चों के आस-पास ही तो ज़िन्दगी है... ज़िन्दगी उन्हें दुलार रही है, उन्हें संवार रही है... उन बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी ज़िन्दगी ढूँढ़ते रहते हैं... उनको खेलते हुए देखकर मेरे चेहरे पर बरबस ही मुस्कराहट की कई सारी रेखाएं उभर आती हैं.... 


सामने की तरफ देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा हाथों में हाथ डाले धीमे धीमे टहल रहा है... उन्हें लगता है यूँ धीमे चलने से वक़्त भी धीमा हो जायेगा... लेकिन ये तो उसी रफ़्तार से चलता है... वो बड़े प्यार से एक दूसरे की आखों को देख रहे हैं... अपनी अपनी निजी परेशानियों को थोड़ी देर के लिए भूलकर बस एक दूसरे का साथ इंजॉय कर रहे हैं शायद... दोनों में से कोई कुछ नहीं कह रहा है... या फिर ये वो भाषा है जो मैं नहीं सुन सकता... इन खामोशियों के कोई अलफ़ाज़ भी तो नहीं होते... वो बिना कुछ कहे ही हर कुछ सुन सकते हैं, हर कुछ महसूस कर सकते हैं... इस लम्हें को कोई भी चित्रकार या फोटोग्राफर कैद करना चाहेगा... बादल आसमान को धीरे धीरे ढकते जा रहे हैं... हलकी-हलकी बारिश शुरू हो गयी है.... लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं... वो तो कब के प्यार की बारिश को महसूस कर रहे हैं... बादल गरजने की ज्यादा आवाज़ तो नहीं महसूस की लेकिन बिजली का चमकना साफ़ दिख गया अँधेरे में.... अचानक से बारिश तेज़ हो गयी है... बारिश... उफ्फ्फ क्यूँ होती है ये बारिश... पार्क की सारी बेंच गीली हो गयी हैं... मैं अपनी छतरी निकाल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगता हूँ... वो अब भी एक दूसरे का हाथ पकडे एक शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहे हैं..


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पार्क की एक बेंच पर बैठा आसमान से बातें कर रहा हूँ कि, दो बेंच छोड़कर बैठे दो थोड़े जाने पहचाने चेहरे दिखे.. पिछली बार की ही तरह कोई कुछ नहीं बोल रहा.. एक लम्बी चुप्पी के बाद लड़की ने कुछ कहा, लड़के ने हामी में सर हिला दिया है... और फिर खामोशियाँ बातें करने लगीं... प्यार करने वालों को देखकर अच्छा लगता है... वैसे भी इस भाग दौड़ में यूँ फुरसत के पल कितने कम रह गए हैं... शुक्र है प्यार के इस रास्ते में दोराहे नहीं होते... इंसान उस साथ को जीता रहता है और खुश रहता है... आज मौसम ठीक है लेकिन मुझे कुछ काम है, मैं पार्क के गेट से बाहर निकलते हुए एक बार पलट कर देखता हूँ... वो दोनों अब भी खामोश हैं... वो शाम बहुत मुलायम सी थी और वो दोनों इसे ओढ़कर बड़े प्यार से बैठे थे....


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आज काफी दिनों बाद पार्क आया हूँ, पर सब कुछ पुराना पुराना सा है... वैसे भी चीजें कहाँ बदलती हैं उन्हें देखने का नजरिया बदलता जाता है... बदलना भी एक अजीब शय है, मैं कभी कभी मज़ाक में अंशु से पूछता हूँ कि पिछले १ साल में तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या क्या बदला, तो वो खिलखिला कर जवाब देती है "तुम जो आ गए..."  और ऐसा कह कर अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया करती है... उस समय उसकी आखों में अजीब सी चमक होती है... फिर मैं ग़र पूछूं कि मेरे अलावा क्या बदला... फिर वो बोलती है "छोडो न कुछ भी बदला हो मुझे क्या.. बदलने दो जो भी बदलता है..." इन्हीं ख्यालों में खोया खोया मैं यूँ ही मुस्कुरा रहा हूँ... तभी मेरी नज़र एक लड़के पर पड़ी, वही जिसे मैं नहीं जानते हुए भी जानता हूँ... वो आज अकेला है, शायद इंतज़ार कर रहा हो उस लड़की का.... लेकिन आखों में इंतज़ार की कोई झलक नहीं... वो सूनी आखों से पास के गमले की मिटटी को देख रहा है... काफी देर तक कोई हलचल नहीं... उसका अकेलापन मुझे परेशान कर रहा है... मन में कई तरह के प्रश्न घुमड़ रहे हैं.. फिर भी बिना उससे कुछ कहे वहां से उठ जाता हूँ...



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पता नहीं क्यूँ आज उस निश्चित समय पर मैं पार्क आने के लिए बहुत बेचैन हूँ... तेज़ क़दमों से मैंने पार्क के अन्दर कदम रखा, फिर घडी की तरफ निगाह डाली तो आज शायद थोडा पहले आ गया... मैंने इधर उधर निगाह दौड़ाई और एक खाली बेंच पर बैठ गया... नज़र पार्क के गेट पर टिकी हुयी है, भला किसका इंतज़ार है मुझे और क्यूँ... वो लड़का आता हुआ दिख रहा है, लेकिन वो आज भी अकेला है... वो आकर अपनी उसी पूर्वनिर्धारित बेंच पर बैठ गया है... थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद मुझसे रहा नहीं जाता और मैंने उसकी तरफ कदम बढ़ा दिए हैं... मैं उसको जाकर हेलो करता हूँ... वो थोड़ी अजीब सी प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखता है..
मे आई सिट हियर ???
या स्योर...
डु यू नो हिंदी .. ? (बंगलौर में ऐसा पूछना पड़ता है....)
हाँ.. (इसका जवाब हाँ में होना ज़रूरी था नहीं तो बाकी की पोस्ट इंग्लिश में हो जाती...)
फिर मैं उसको वो बातें बताता हूँ जो मैंने ओबजर्व की थीं... मेरी बातें सुनते सुनते उसकी आखें और सूनी होती जा रही हैं ... वो इसका कोई जवाब नहीं देता, उठ कर जाने लगता है ...
क्या हुआ ??
कुछ नहीं... मेरी ट्रेन है आज रात को, मैं ये शहर छोड़ कर जा रहा हूँ ....
फिर शायद उसे मेरी आखों में उभर आये ढेर सारे प्रश्न दिखने लग गए... काफी सोच कर रूंधे गले से उसने कहा..
कल रात उसकी शादी हो गयी, उसके पापा हमारी शादी को तैयार नहीं थे... और बिना उनकी मर्ज़ी के वो तैयार नहीं थी... 
फिर काफी देर तक वहां सन्नाटा छाया रहा, मेरे पास उसे कहने के लिए कुछ नहीं था... थोड़ी देर बाद उसने खुद कहा...


इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया.. हम यहीं मिले, यहीं दोस्त बने और फिर यहीं प्यार भी हो गया... आज जब वो मेरे साथ नहीं है तो इस शहर को यूँ ही छोड़ कर जा रहा हूँ, मैं नहीं चाहता कि इस शहर को मैं उदास निगाहों से कभी देखूं... चाहता हूँ पार्क की इस बेंच पर फिर कोई प्यार करने वाले बैठे, यहाँ अपनी उदासी का रंग नहीं बिखेरना चाहता... इस शहर को अपनी तन्हाई से दूर रखना चाहता हूँ... ताकि कल अगर इस शहर को कभी याद करूँ तो बस अच्छी अच्छी यादें ही मिलें... हमें साथ में जितना वक़्त भी भगवान् ने दिया बस उन्ही लम्हों को समेटे एक नए सफ़र पर निकल रहा हूँ... जानता हूँ उतना आसान नहीं होगा मेरे लिए, लेकिन उतना आसान आखिर दुनिया में है भी क्या भला... ये आखिरी इम्तहान भी देना ज़रूरी है न अपने प्यार को निभाने के लिए... ताकि अगर इस इम्तहान में पास हो गया तो फिर अगले जन्म में उसके साथ हमेशा हमेशा रह सकूं....
वो जा रहा है, मैं चाह कर भी कुछ न बोल सका... 
बारिश धीमे धीमे अपनी बूँदें धरती पर फैला रही है... पहली बार मिटटी की सोंधी खुशबू मुझे अच्छी नहीं लग रही... आस-पास का माहौल नम हो गया है, सडकें धुंधली दिखने लगी हैं... छतरी होते हुए भी मैं नहीं खोल रहा और भारी कदमो से पार्क से बाहर निकल रहा हूँ, पलट कर देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे उसी शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा है... सच में प्यार जितनी देर भी रहता है हम बस उसी में रहते है... ये सफ़र चलता रहता है और साथ साथ हमारी ज़िन्दगी भी ...

Special. Tq.  


Princess

(In.. Dream...) Heeyy  Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h k...