10.3.23

Princess

(In.. Dream...)
Heeyy
 Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h kadam rakhunga.. nhi toh darr kar bhag jayegi .... Ohh   shit  sssshhhhsssshh... Thank god usko pta nhi chala ki main uske piche hoon...  Main toach krta hoon phir achanak dekhegi piche... Aaayy yrr kanhi chali na jayeee..... Ohhhhhh shit... Kaha gyi kaha gyi arry yrr sapna dekh Raha tha...chalo usko dekho liya dil ko sakoon mila... Woh..uska chehra hamesha mere ankhon main bassa rahega....Woh uski lambi lambi julfe... Jo beparwah udd rahi thi...Aur Woh ...
 In  draft ..     Continue (coming soon)



12.12.22

Gunn gunaa ne do dhadhkne do

वे दोनों हर शाम मिलते थे, देर तक बैठ कर वो खूब बातें करते थे. आदत से मजबूर, लड़का अक्सर फिल्मों या किताबों का जिक्र छेड़ देता. लड़की इस बात पर लड़के को टोकती नहीं, कि वो हमेशा फिल्मों की बात क्यों करने लगता है, बल्कि वो लड़के की बातों में दिलचस्पी लेने लगती. कभी कभी लड़का गानों का जिक्र छेड़ देता. लड़का गानों का जिक्र जानबूझ कर छेड़ता. वो जानता था कि गानों के जिक्र से लड़की गुनगुनायेगी, और लड़के को लड़की का यूँ गुनगुनाना बहुत पसंद था. लड़के और लड़की का ये गाना-गुनगुनाना कुछ कुछ अन्ताक्षरी जैसा ही होता, बस इसमें कोई नियम और हार-जीत नहीं थे.

एक ऐसी ही खूबसूरत शाम थी. दोनों एक दुसरे का हाथ थामे शहर के सनसेट पॉइंट पर खड़े थे. खूब ठंडी हवा चल रही थी और मौसम बेहद रोमांटिक था. लड़के के मन में कुछ शरारत सूझी और उसनें लड़की को झटके से अपने बेहद करीब खींच लिया, और एक गाने के बोल गुनगुनाने लगा -

ये रतजगे, लम्बी रातों के दिल ना लागे क्या करूं?
ये सिलसिले, दिल की बातों के जादू चले क्या करूं

बिखरा ज़ुल्फ़ें सो जाऊं, दिल चाहे कहीं खो जाऊं
मदहोश दिल की धड़कन ...चुप सी ये तन्हाई

लड़के के इस ‘मूव’ से लड़की एकदम चौंक सी गयी, लेकिन हैरत की जगह, एक मुस्कान उसके चेहरे पर सिमट आई थी. लड़के के गाने के जवाब में, उसका हाथ थामे वो भी गुनगुनाने लगी –

ख्वाब आँखों में अब नहीं आते / अब तो पलकों में तुम समाये हो
हर घड़ी साथ-साथ रहते हो / दिल की दुनिया में घर बसाये हो
दिल की दुनिया में घर बसाये हो...
तेरी हर बात पे हम ऐतबार करते हैं
ऐ सनम हम तो सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं..

लड़की के इस संगीतमय जवाब से लड़के का चेहरा खिल उठा. अब उसकी बारी थी. ऐसे सिचुएशन में लड़के को लड़की के लिए गाने सेलेक्ट करने में कभी सोचना नहीं पड़ता था. ख़ास लड़की के लिए डेडिकेटेड गानों की तो लड़के के पास ना खत्म होने वाली लिस्ट थी. लड़के ने इस बार लड़की का हाथ अपने हाथों में लेकर गुनगुनाना शुरू किया -

मिले होंगे राधा कृष्ण, यहीं किसी वन में,
प्रेम माधुरी उनकी बसी है पवन में
और भी पास आ गए हम इस दिव्य वातावरण में...
एक मन दिया है, कितने सौगातें अभी हैं बाकी,
बौछार एक पड़ी है, बरसातें अभी हैं बाकी...

इस बार लड़की भी शायद अगला गाना लेकर पहले से तैयार थी. हवा में उड़ते अपनी जुल्फों को लड़की ने दोनों हाथों से समेटा, ढलते सूरज की तरफ देखते हुए गुनगुनाने लगी -

शमा को पिघलने का अरमान क्यूँ है
पतंगे को जलने का अरमान क्यूँ है
इसी शौक का इम्तिहान जिंदगी है...
मोहब्बत जिसे बक्श दे जिंदगानी
नहीं मौत पर ख़त्म उसकी कहानी

कैसे जिया जाए..इश्क़ बिन
नहीं कोई इंसान मोहब्बत से खाली
हर एक रूह प्यासी हर एक दिल सावनी

मोहब्बत जहाँ है वहाँ जिंदगी है..
मोहब्बत ना हो तो कहाँ जिंदगी है...
तोसे नैना लागे मिली रौशनी...

लड़की ने लड़के की आँखों में ऐसे देखा, जैसे उससे कुछ पूछ रही हो. जैसे इस गाने का मतलब लड़के के आँखों में वो तलाश रही हो. लड़का, जिसके पास हमेशा लड़की के सवाल का जवाब मौजूद रहता था, इस बार वो भी खामोश था.

लड़की ने कुछ ऐसे लहजे में ये गाना गया था कि लड़का थोड़ा ‘स्पीचलेस’ जैसा हो गया था. कुछ देर तक दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा. बस सामने खुले आकाश को देखते रहे.

कुछ सोच कर लड़का अचानक मुस्कुराया, और फिर उसनें लड़की को अपने और पास खींचा. इस बार अपने बिलकुल करीब.. ऐसे कि लड़की उसके बाहोँ में आ गिरी. लड़की का चेहरा लड़के के चेहरे के एकदम पास आ गया. लड़के ने लड़की के काँपते होटों को देखा, और फिर उसकी आँखों में आखेँ डाल गुनगुनाने लगा –

Would you tremble if I touched your lips?
Or would you laugh? Oh, please tell me this
Now would you die for the one you love?
Oh hold me in your arms tonight

I can be your hero baby
I can kiss away the pain
I will stand by you forever
You can take my breath away

 बार लड़के ने सिर्फ चंद लाइन नहीं, बल्कि इस पूरे गाने को गुनगुनाया था. लड़की जो स्वीट डिश के साथ साथ शरमाने में भी महारथ हासिल किये थी, इस बार उसकी पलकें ऐसे झुकी कि उठने का नाम नहीं ली रही थी. उसके होठ अब भी काँप रहे थे, लड़के ने अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को ऊपर उठाया, और फिर बहुत धीमे से उसके माथे को चूम लिया.


शाम ढल चुकी थी, और लड़की को वापस घर जाना था. लेकिन ना लड़की को, ना ही लड़के को वापस जाने की कोई जल्दी थी. लड़की ने अपना सर लड़के के कंधे पर टिका दिया, और अपनी उँगलियों में सगाई की अंगूठी को देख देख बहुत हलके आवाज़ में गुनगुनाने लगी -

एक दिन आप यूँ हमको मिल जाएंगे
फूल ही फूल राहों में खिल जाएंगे
मैंने सोचा न था...

एक दिन ज़िंदगी इतनी होगी हसीं
झूमेगा आसमां, गाएगी ये ज़मीं
मैंने सोचा न था ..

दिल की डाली पे कलियाँ सी खिलने लगी
जब निगाहें निगाहों से मिलने लगी
एक दिन इस तरह होश खो जाएंगे
पास आए तो मदहोश हो जाएंगे
मैंने सोचा न था ....

10.5.22

Magician

दोपहर बीत चली थी लेकिन बारिश थी
कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी. लड़का
अपने कमरे में बैठे बारिश के रुकने की
प्रतीक्षा कर रहा था. दो दिन से तेज़
ज़ुकाम और हलके बुखार की वजह से वो घर में
कैद था और इन दो दिनों से लगातार
बारिश हो रही थी. अपने बालकनी में बैठे
बारिश की बूँदों को देख वो सोच रहा
था कि कभी जनवरी की बारिश कितनी
ख़ास होती थी लेकिन अब तो जैसे जनवरी
की बारिश भी कोई मायने नहीं रखती.
पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ बदल गया था.
कई यकीन, कई सपनें टूट गए थे. एक के बाद एक
उसे अपनी हर नाकामी याद आ रही थी.
दिन में कई बार उसने सोचा कि घर पर बात
कर ले, लेकिन वो जानता था कि घर पर
उसकी हलकी बिमारी की खबर भी सबको
बेचैन कर देती है. अपने घरवालों को वो अब
और कोई तकलीफ नहीं देना चाहता था.
वो उस लड़की से भी बात करना चाहता
था जो उसके सुख दुःख की साथी थी.
लड़के के माँ-बाप, छोटे भाई और बहन के
अलावा पूरे दुनिया में एक वही तो थी जो
उसकी हर बात समझती थी. लेकिन जाने
किस हिचक से या अनजाने डर से वो उसे
फोन नहीं कर पाया था.
दो दिन पहले उसकी लड़की से बात हुई थी
और तब लड़की का मन बेहद अशांत था.
लड़की के परिवार में उन दोनों को लेकर खूब
हंगामा हुआ था. लड़की उस रात फोन पर
बहुत देर तक रोती रही थी और बस यही
दोहराते रही थी – “आई विल डाई
विदआउट यू....एंड आई मीन इट!” पूरे दिन लड़के
के मन में भी बस यही पाँच शब्द घूमते रहे थे जो
लड़की ने दो रात पहले कहे थे और जिन्हें वो
तोड़ मरोड़ के पूरे दिन दोहराता रहा
था...आई विल डाई.....विदआउट
यू.....विदआउट यू...आई विल डाई.
शाम होते होते लड़के को उसका अकेलापन,
उसकी नाकामी और लड़की के कहे शब्द इस
कदर बेचैन करने लगे कि घर में और रुकना संभव न
हो सका. वो बारिश में ही घर से बाहर
निकल आया था. बारिश में भीगता हुआ
वो सड़कें पार करने लगा. एक जगह से दुसरे जगह
वो घूमता रहा. घर से बाहर, सड़कों पर उसे ये
तसल्ली थी कि वो अकेला नहीं है. बहुत से
लोगों के बीच में वो भी एक है. देर रात तक
वो उन भीड़ भरी सड़कों पर इधर उधर
निरुद्देश्य घूमता रहा और जब घर लौटा तो
ठण्ड से उसका शरीर काँप रहा था.
कमजोरी और थकान इस कदर हावी हो
गयी थी उसपर कि वो बिना कुछ खाए सो
गया.
सुबह जब आँख खुली उसकी, तो उसका पूरा
शरीर बुखार से तप रहा था. उसमें इतनी
ताकत भी नहीं बची थी कि बिस्तर से उठ
कर वो पानी तक पी सके. शाम के अपने
पागलपन के लिए वो खुद को कोसने लगा
था. रात सड़कों पर घुमने से कुछ देर के लिए
जिस अकेलेपन से उसे छुटकारा मिला था
उस अकेलेपन ने उसे फिर से जकड़ लिया था.
दिन भर के बुरे ख्याल फिर से आने लगे थे. वो
ये सोचते ही काँप गया कि इस शहर में वो
अकेला है..बिलकुल अकेला. उसे अगर कुछ हो
भी जाए तो भी उसकी मदद करने कोई नहीं
आने वाला.
उसे अपने एक चाचा की याद आने लगी, जो
काफी साल पहले इस दुनिया से जा चुके थे.
तब वो काफी छोटा था. उसे बहुत दिनों
तक ये लगता रहा था कि चाचा की मौत
बुखार से नहीं बल्कि अकेले रहने से हुई थी. वो
भी लड़के की तरह अकेले रहते थे. उसने सोचा जो लोग
अकेले कमरे में मरते हैं वो कितने बदनसीब होते
हैं कि आखिरी वक़्त कोई भी उनके पास
नहीं होता. ये सोचते ही वो एकदम
आतंकित सा हो गया. अकेलेपन के बारे में तो
लड़के ने पहले भी कई बार सोचा था लेकिन
मौत के बारे में उस दिन उसने पहली बार
सोचा था.
सामने टेबल पर रखी लड़की की तस्वीर पर
उसकी नज़र गयी तो उसे याद आया पहले जब
कभी ऐसी बातें वो मजाक में भी लड़की
को कह देता तो वो उससे रूठ जाया करती
थी. वो तो शायरी और कविताओं में भी
मौत जैसे शब्दों को झेल नहीं पाती थी और
चिढ़ कर कहती कि ऐसे नेगटिव शब्दों का
इस्तेमाल करने वाले कवि और शायरों को
जेल में बंद कर देना चाहिए. पॉजिटिव
थिंकिंग की वो खुद को एक मिसाल
समझती थी. ऐसा था भी. फुल ऑफ़ लाइफ
लड़की थी वो. लेकिन वही फुल ऑफ़ लाइफ
लड़की ने उससे कहा था “आई विल डाई
विदआउट यू”.
लड़के को बहुत पहले का एक दिन भी याद
आया जब वो बहुत बीमार था और लड़कीमजाक में कहा था “ये
बुखार तो मेरी जान ले लेगी”. ये सुनते ही
लड़की ने उसे दो तीन मुक्के जड़ दिए थे और
गुस्से में कहा था, ‘बीमार हो और तब भी
मार खाने की तुम्हारी तलब शांत नहीं
होती’. उस एक छोटे से मजाक से लड़की पूरे
दिन रूठी रही थी.
लड़के को अक्सर लगता था कि लड़की के
पास कोई जादू का पिटारा है. उस दिन
जब वो अपने घर में बीमार पड़ा था तब
लड़की ने इरिटेट होकर कहा था, "कितने
प्लान बनाये थे हमनें आज के लिए और तुम
बिस्तर पर पड़े हो...रुको मैं तुम्हें ठीक करने
का कुछ उपाय करती हूँ". लड़के को इस बात
पर हँसी आ गयी थी.. “तुम क्या करोगी?
तुम कोई डॉक्टर थोड़े हो?” लड़के ने कहा.
लड़की फिर बेपरवाह ढंग से हँसते हुए कहने
लगी.. “मैं डॉक्टर नहीं...मैजिशियन
हूँ....मैजिशियन. मैं वो भी कर सकती हूँ जो
डॉक्टर्स नहीं कर सकते...”
ये कहते हुए उसने लड़के के माथे और गालों को
ऐसे सहलाया जैसे वो कोई फ़रिश्ता हो
और उसके बस छू लेने से कोई चमत्कार होगा
और लड़के की बीमारी गायब हो जायेगी.
उस वक्त लेकिन लड़के को सही में ऐसा महसूस
हुआ कि जैसे लड़की की हाथों की
मसीहाई धीरे धीरे उसके समूचे शरीर में उतर
रही है और वो अब ठीक है. उसे उस दिन ये
यकीन था कि उसका बुखार दवा खाने की
वजह से नहीं बल्कि उस लड़की की वजह से
उतरा था.
शायद टेलीपैथी जैसी कोई चीज़ होती
जरूर है. लड़का अपनी उस मैजिशियन को
याद कर ही रहा था कि तभी फोन की
घंटी सुनाई दी. लड़के ने हड़बड़ा के अपना
मोबाइल देखा. लेकिन मोबाइल खामोश
था, उसपर कोई कॉल नहीं था.. लड़के की
नज़र सामने खुले लैपटॉप पर गयी तो वो चौंक
गया. लैपटॉप पर लड़की का विडियो
कॉल आ रहा था.
लड़के को याद आया कि हमेशा की तरह
रात में वो लैपटॉप बंद करना भूल गया था
और विडियो चैट का एप्लीकेसन लॉग इन
था. लड़की दुसरे टाइम जोन के शहर में रहती
थी. जब लड़के के शहर में सुबह होती तो
लड़की के शहर में रात. लड़की अक्सर इस वक़्त
लड़के को विडियो कॉल करती थी.
विडियो कॉल से दोनों को तसल्ली
रहती कि वो दोनों दूर नहीं हैं. लड़की
कहती लड़के से कि तुम्हें देखकर सोती हूँ तो
मुझे बड़ी अच्छी नींद आती है और लड़का
कहता, कि तुम्हें सुबह देख लेता हूँ तो मेरा
दिन बहुत अच्छा हो जाता है.
लैपटॉप पर लड़की का कॉल देखकर लड़का
असमंजस में पड़ गया कि वो क्या करे? वो ये
नहीं चाहता था कि लड़की उसे इस हालत
में देखे. उसने सोचा कि वो कॉल रिसीव न
करे और बाद में बहाना बना दे कि वो सो
रहा था. लेकिन लड़की लगातार कॉल कर
रही थी. वो जानता था कि उसने बहाना
बनाया तो लड़की उसका झूठ ताड़
जायेगी. खुद को थोड़ा संभाल कर, हिम्मत
जुटा कर उसने कॉल रिसीव किया.
लड़के ने पूरी कोशिश की थी कि वो
अपना हाल छुपा ले, लेकिन उसकी एक झलक
से ही लड़की ने सब समझ लिया था. दो
दिनों से लड़की वैसे ही परेशान थी और अब
लड़के की ऐसी हालात देख कर वो एकदम टूट
गयी. लड़की को ये समझते देर न लगी कि दो
दिन पहले उसने जो डिप्रेसिंग बातें की थी,
उस वजह से लड़के की ऐसी हालत हुई है.
हालाँकि लड़के ने उसे खूब समझाने की
कोशिश की कि वो गलत सोच रही है और
बारिश में भीग जाने की वजह से उसे बुखार
चढ़ आया था. लड़की लेकिन जानती थी
कि बुखार में जहाँ अधिकतर लोग बिस्तर पर
पड़े रहते हैं वहीँ लड़का आराम से घूमते रहता
था.
लड़की कहती नहीं थी लेकिन लड़के के
अकेलेपन को वो अच्छे से समझती थी..तभी
तो वो दो दिन से इस गिल्ट में रही कि उसे
लड़के से ऐसा नहीं कहना चाहिए था. वो
जानती थी कि ऐसी बातों को लड़का
काफी गंभीरता से ले लेता है और फिर
अक्सर उसकी तबियत बिगड़ जाती है.
लड़की ने धीमी आवाज़ में लड़के से कहा
"सुनो, मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था".
लड़के ने लड़की को फिर तसल्ली देनी चाही
कि वो गलत सोच रही है और उसकी बातों
का उसपर कोई असर नहीं हुआ था.
लड़की लेकिन इस बार थोड़ी उखड़ सी गयी
"तुम क्या सोचते हो कि मैं कुछ नहीं
जानती..सब जानती हूँ मैं कि कौन सी
बातें तुमपर कैसे असर करती हैं. तुम कैसे रहते
हो...वो भी जानती हूँ मैं. लेकिन सुनो...ऐसे
जिया नहीं जाता..इतनी तकलीफ किस
लिए? मैं नहीं जानती कि तुम अक्सर पूरी
पूरी शाम सड़कों पर बस इसलिए बिता देते
हो ताकि घर के अकेलेपन और सूनेपन से बचे
रहो. तुम ये सब क्यों सहते हो? सुनो..तुम
वापस अपने घर क्यों नहीं चले जाते..कम से
कम मुझे तसल्ली रहेगी. वरना जब तक ऐसे
रहोगे मैं भी चैन से नहीं रह पाऊँगी.." कहते
हुए लड़की का गला रुंध आया था.
लड़के की आँखें भी भींग आई थी. वो
जानता था कि लड़की उसकी फ़िक्र
करती है. वो नहीं चाहता था कि लड़की
उसकी तकलीफों से परेशान हो इसलिए वो
जान बूझकर लड़की से कुछ भी नहीं कहता
था. लड़की लेकिन फिर भी समझ समझ
जाती थी. ऐसे समय में लड़का हमेशा चुप हो
जाया करता था और लड़की असहाय सा
महसूस करती कि वो लड़के के पास नहीं है.
लड़की को लड़के की बीमारी कि उतनी
चिंता नहीं होती थी, वो जानती थी
कि लड़का खुद का ख्याल रख सकता है.
लेकिन लड़के को जब भी यूँ अकेलेपन का
एहसास होता, बुरे ख्याल जब भी लड़के को
परेशान करते तो लड़की को हमेशा लगता
कि काश वो उसके पास, उसके साथी
होती.
लड़की बार बार अपनी उँगलियों को
वेबकाम तक ले जा रही थी. वो लड़के को
छूना चाहती थी. पागल थी वो. बहुत पहले
कभी किसी दिन पार्क में बैठे हुए उसनें लड़के
की हथेलियों को खुद की हथेलियों से
लॉक कर लिया था और अपना दुपट्टा लपेट
दिया था इस उम्मीद के साथ कि दोनों के
हाथ हमेशा के लिए जुड़ जायेंगे और जब उसने
दुपट्टा हटाया और हथेलियाँ अलग हो गयी
तो वो उदास हो गयी थी..और आज वो
चाह रही थी कि किसी तरह कोई
चमत्कार हो जाए और वो इस वेबकैम से हाथ
निकाल ककर लड़के को छू सके.
हर बार जब वो अपने इस पागलपन में असफल
हो रही थी, इरिटेट होकर लड़के से कहने
लगी “सुना है किसी सॉफ्टवेर इंजिनियर ने
अपनी गर्लफ्रेंड को ढूँढने के लिए एक सोशल
नेटवर्किंग साईट ही बना दी थी.तुम भी मेरे
लिए कोई ऐसी तकनीक का अविष्कार
क्यों नहीं कर देते कि मैं जब चाहूँ तुम्हारे
पास पहुँच सकूँ.?
वो ऐसी सिचुएशन तो नहीं थी कि लड़के
को हँसी आये लेकिन लड़की की इस प्यारी
नादानी पर उसकी हँसी छुट गयी.."मैं
उतना क्वालफाइड नहीं हूँ. तुम कोशिश
करो. इंजीनियरिंग की डिग्री तो तुम्हारे
पास भी है.."
लड़के के ऐसे हलके फुल्के मजाक से लड़की अन्दर
ही अन्दर खुश हुई, लेकिन चेहरे पर नकली
गुस्सा दिखाते हुए उसनें लड़के को डांटा..
"तुम्हें तो अच्छा लगता है न मुझे यूँ परेशान
होता देखकर? तभी तो हँस रहे हो. खुद अकेले
रहकर बेवजह की बातें सोचते हो और मुझे
उदास कर देते हो. पता है तुम्हें आज माँ के
बर्थडे की पार्टी थी और सजने-सँवरने में मुझे
पूरे दो घंटे लगे थे. सबने कितना कॉम्प्लीमेंट
भी दिया कि बहुत सुन्दर दिख रही हूँ और
तुमनें रुलाकर देखो सब बर्बाद कर दिया.
सोचा था तुम्हें आकर अपनी ये नयी साड़ी
दिखंगी. तुमसे परसों रात के लिए माफ़ी
भी तो मांगनी थी...लेकिन तुम..तुम तो खुद
की ऐसी हालत बनाये हुए हो कि क्या कहूँ
मैं?और अब हँस रहे हो? बेशर्म कहीं के..
बीमार हालत में भी लड़का हड़बड़ा गया.
वो तुरंत माफी माँगने के मोड में आ गया.
“अच्छा चलो माफ़ कर दो और ये गुस्सा
छोड़ो.अब नहीं सोचूँगा ऐसा वैसा कुछ
भी. अब बस तुम्हारे बारे में सोचूँगा...ठीक?
देखो तुम आज कितनी प्यारी लग रही
हो..ये नाराज़गी तुम्हारे इस प्यारे चेहरे पर
बिलकुल सूट नहीं करती.” लड़के ने लड़की को
मनाने की पूरी कोशिश की. लड़की लेकिन
उसे इतनी आसानी से माफ़ करने के मूड में नहीं
थी. अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा
कर के वेबकैम के एकदम नज़दीक अपने चेहरे को
लाकर उसने गुस्से में कहा "ना..मत सोचो मेरे
बारे में.. तुम्हें तो मुझसे नहीं, अकेलेपन से प्यार
है न...और नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी
तारीफ़. .तुमने तो कसम खा रखी है न कि
बिना मुझसे डांट सुने मेरी तारीफ़ नहीं
करोगे...अभी भी और डांट सुनने का इरादा
है या चुपचाप दवा खाओगे मेरे सामने?
जानती हूँ मैं कि तुमनें दवा नहीं खायी
होगी अब तक".
लड़का मुस्कुराने लगा. थोड़ा फ़िल्मी होते
हुए उसने कहा “मुझे वैसे दवा खाने की अब
क्या जरूरत? तुम जो हो मेरे सामने...देखना
मेरी मैजिशियन सब ठीक कर देगी. ये बुखार
कहाँ टिक पायेगा मेरी मैजिशियन के
सामने? है न? देखना डर के भाग जाएगा
बुखार”. लड़की के गुस्से वाले चेहरे पर अब
हलकी मुस्कान उभर आई थी..अपने बारे में
ऐसी बातें सुनकर वैसे भी उसका चेहरा एकदम
खिल जाता था. फिर भी ऐटिटूड दिखाते
हुए उसने कहा “मस्का लगा रहे हो मुझे?”
“हाँ बिलकुल...तुम्हें तो मस्का बहुत पसंद है
न?” लड़के ने उसे छेड़ते हुए कहा.
“हुहं...व्हाटेवर......” लड़की ने कन्धों को
उचकाकर, लड़के के सवाल को गोल कर
दिया.
लड़के को लगा जैसे उसके सामने फिर से
उसकी वही पुरानी दोस्त खड़ी है जो बात
बे बात पर गुस्सा हो जाया करती थी और
लड़के को उसे मनाने के लिए फिर कितने जतन
करने पड़ते थे. लड़के को लगा जैसे दो दिन का
सारा बोझिलपन, अकेलापन और उसके अंदर
का भारीपन धीरे पिघलने लगा है. उदासी
के बादल उसके चेहरे से तो लड़की को देखते ही
छटने शुरू हो गए थे, लेकिन अब उसे लगा जैसे
उसकी तबियत भी ठीक है और वो हल्का
महसूस कर रहा है. उसे लगा कि ये लड़की सच
में उसकी मैजिशियन है जो सब कुछ ठीक कर
देती है...


24.9.20

Pyar Ek Safar Hai Aur Safar Chlta Rehta hai

 



पार्क में बैठना कितना सुकून देता है, बस थोड़ी देर ही सही... मुझे भी अच्छा लगता है बस यूँ ही बैठे रहो और आस-पास देखते रहो... कई तरह के लोग... हर किसी की आखों से कुछ न कुछ झांकता रहता है... ढलती हुयी शाम है, हल्के हल्के बादल है... ठंडी हवा चल रही है... पास वाली बेंच पर कई बुज़ुर्ग आपस में कुछ बातें कर रहे हैं... ऊपर से तो वो मुस्कुरा रहे हैं लेकिन उनकी आखें सुनसान हैं... उस सन्नाटे को शायद शब्दों में उतारना मुमकिन न हो सके.... उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर सभी के जहन में "क्या खोया-क्या पाया...." जैसा कुछ ज़रूर चलता होगा... कितनों के चेहरे पर इक इंतज़ार सा दिखता है... इंतज़ार उस आखिरी मोड़ का... जहाँ के बाद क्या है किसी ने नहीं देखा... किसी ने नहीं जाना... 
उसकी ठीक दूसरी तरफ प्ले ग्राउंड में कुछ बच्चे खेल रहे हैं, उनकी दुनिया में कोई परेशानी नहीं है...परेशानियां है भी तो कितनी प्यारी-प्यारी सी... किसी की बॉल किसी दूसरे बच्चे ने ले ली, किसी के पैरों में थोडा सा कीचड लग गया... किसी को आईसक्रीम खानी है... उन छोटे छोटे बच्चों के आस-पास ही तो ज़िन्दगी है... ज़िन्दगी उन्हें दुलार रही है, उन्हें संवार रही है... उन बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी ज़िन्दगी ढूँढ़ते रहते हैं... उनको खेलते हुए देखकर मेरे चेहरे पर बरबस ही मुस्कराहट की कई सारी रेखाएं उभर आती हैं.... 


सामने की तरफ देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा हाथों में हाथ डाले धीमे धीमे टहल रहा है... उन्हें लगता है यूँ धीमे चलने से वक़्त भी धीमा हो जायेगा... लेकिन ये तो उसी रफ़्तार से चलता है... वो बड़े प्यार से एक दूसरे की आखों को देख रहे हैं... अपनी अपनी निजी परेशानियों को थोड़ी देर के लिए भूलकर बस एक दूसरे का साथ इंजॉय कर रहे हैं शायद... दोनों में से कोई कुछ नहीं कह रहा है... या फिर ये वो भाषा है जो मैं नहीं सुन सकता... इन खामोशियों के कोई अलफ़ाज़ भी तो नहीं होते... वो बिना कुछ कहे ही हर कुछ सुन सकते हैं, हर कुछ महसूस कर सकते हैं... इस लम्हें को कोई भी चित्रकार या फोटोग्राफर कैद करना चाहेगा... बादल आसमान को धीरे धीरे ढकते जा रहे हैं... हलकी-हलकी बारिश शुरू हो गयी है.... लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं... वो तो कब के प्यार की बारिश को महसूस कर रहे हैं... बादल गरजने की ज्यादा आवाज़ तो नहीं महसूस की लेकिन बिजली का चमकना साफ़ दिख गया अँधेरे में.... अचानक से बारिश तेज़ हो गयी है... बारिश... उफ्फ्फ क्यूँ होती है ये बारिश... पार्क की सारी बेंच गीली हो गयी हैं... मैं अपनी छतरी निकाल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगता हूँ... वो अब भी एक दूसरे का हाथ पकडे एक शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहे हैं..


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पार्क की एक बेंच पर बैठा आसमान से बातें कर रहा हूँ कि, दो बेंच छोड़कर बैठे दो थोड़े जाने पहचाने चेहरे दिखे.. पिछली बार की ही तरह कोई कुछ नहीं बोल रहा.. एक लम्बी चुप्पी के बाद लड़की ने कुछ कहा, लड़के ने हामी में सर हिला दिया है... और फिर खामोशियाँ बातें करने लगीं... प्यार करने वालों को देखकर अच्छा लगता है... वैसे भी इस भाग दौड़ में यूँ फुरसत के पल कितने कम रह गए हैं... शुक्र है प्यार के इस रास्ते में दोराहे नहीं होते... इंसान उस साथ को जीता रहता है और खुश रहता है... आज मौसम ठीक है लेकिन मुझे कुछ काम है, मैं पार्क के गेट से बाहर निकलते हुए एक बार पलट कर देखता हूँ... वो दोनों अब भी खामोश हैं... वो शाम बहुत मुलायम सी थी और वो दोनों इसे ओढ़कर बड़े प्यार से बैठे थे....


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आज काफी दिनों बाद पार्क आया हूँ, पर सब कुछ पुराना पुराना सा है... वैसे भी चीजें कहाँ बदलती हैं उन्हें देखने का नजरिया बदलता जाता है... बदलना भी एक अजीब शय है, मैं कभी कभी मज़ाक में अंशु से पूछता हूँ कि पिछले १ साल में तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या क्या बदला, तो वो खिलखिला कर जवाब देती है "तुम जो आ गए..."  और ऐसा कह कर अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया करती है... उस समय उसकी आखों में अजीब सी चमक होती है... फिर मैं ग़र पूछूं कि मेरे अलावा क्या बदला... फिर वो बोलती है "छोडो न कुछ भी बदला हो मुझे क्या.. बदलने दो जो भी बदलता है..." इन्हीं ख्यालों में खोया खोया मैं यूँ ही मुस्कुरा रहा हूँ... तभी मेरी नज़र एक लड़के पर पड़ी, वही जिसे मैं नहीं जानते हुए भी जानता हूँ... वो आज अकेला है, शायद इंतज़ार कर रहा हो उस लड़की का.... लेकिन आखों में इंतज़ार की कोई झलक नहीं... वो सूनी आखों से पास के गमले की मिटटी को देख रहा है... काफी देर तक कोई हलचल नहीं... उसका अकेलापन मुझे परेशान कर रहा है... मन में कई तरह के प्रश्न घुमड़ रहे हैं.. फिर भी बिना उससे कुछ कहे वहां से उठ जाता हूँ...



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पता नहीं क्यूँ आज उस निश्चित समय पर मैं पार्क आने के लिए बहुत बेचैन हूँ... तेज़ क़दमों से मैंने पार्क के अन्दर कदम रखा, फिर घडी की तरफ निगाह डाली तो आज शायद थोडा पहले आ गया... मैंने इधर उधर निगाह दौड़ाई और एक खाली बेंच पर बैठ गया... नज़र पार्क के गेट पर टिकी हुयी है, भला किसका इंतज़ार है मुझे और क्यूँ... वो लड़का आता हुआ दिख रहा है, लेकिन वो आज भी अकेला है... वो आकर अपनी उसी पूर्वनिर्धारित बेंच पर बैठ गया है... थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद मुझसे रहा नहीं जाता और मैंने उसकी तरफ कदम बढ़ा दिए हैं... मैं उसको जाकर हेलो करता हूँ... वो थोड़ी अजीब सी प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखता है..
मे आई सिट हियर ???
या स्योर...
डु यू नो हिंदी .. ? (बंगलौर में ऐसा पूछना पड़ता है....)
हाँ.. (इसका जवाब हाँ में होना ज़रूरी था नहीं तो बाकी की पोस्ट इंग्लिश में हो जाती...)
फिर मैं उसको वो बातें बताता हूँ जो मैंने ओबजर्व की थीं... मेरी बातें सुनते सुनते उसकी आखें और सूनी होती जा रही हैं ... वो इसका कोई जवाब नहीं देता, उठ कर जाने लगता है ...
क्या हुआ ??
कुछ नहीं... मेरी ट्रेन है आज रात को, मैं ये शहर छोड़ कर जा रहा हूँ ....
फिर शायद उसे मेरी आखों में उभर आये ढेर सारे प्रश्न दिखने लग गए... काफी सोच कर रूंधे गले से उसने कहा..
कल रात उसकी शादी हो गयी, उसके पापा हमारी शादी को तैयार नहीं थे... और बिना उनकी मर्ज़ी के वो तैयार नहीं थी... 
फिर काफी देर तक वहां सन्नाटा छाया रहा, मेरे पास उसे कहने के लिए कुछ नहीं था... थोड़ी देर बाद उसने खुद कहा...


इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया.. हम यहीं मिले, यहीं दोस्त बने और फिर यहीं प्यार भी हो गया... आज जब वो मेरे साथ नहीं है तो इस शहर को यूँ ही छोड़ कर जा रहा हूँ, मैं नहीं चाहता कि इस शहर को मैं उदास निगाहों से कभी देखूं... चाहता हूँ पार्क की इस बेंच पर फिर कोई प्यार करने वाले बैठे, यहाँ अपनी उदासी का रंग नहीं बिखेरना चाहता... इस शहर को अपनी तन्हाई से दूर रखना चाहता हूँ... ताकि कल अगर इस शहर को कभी याद करूँ तो बस अच्छी अच्छी यादें ही मिलें... हमें साथ में जितना वक़्त भी भगवान् ने दिया बस उन्ही लम्हों को समेटे एक नए सफ़र पर निकल रहा हूँ... जानता हूँ उतना आसान नहीं होगा मेरे लिए, लेकिन उतना आसान आखिर दुनिया में है भी क्या भला... ये आखिरी इम्तहान भी देना ज़रूरी है न अपने प्यार को निभाने के लिए... ताकि अगर इस इम्तहान में पास हो गया तो फिर अगले जन्म में उसके साथ हमेशा हमेशा रह सकूं....
वो जा रहा है, मैं चाह कर भी कुछ न बोल सका... 
बारिश धीमे धीमे अपनी बूँदें धरती पर फैला रही है... पहली बार मिटटी की सोंधी खुशबू मुझे अच्छी नहीं लग रही... आस-पास का माहौल नम हो गया है, सडकें धुंधली दिखने लगी हैं... छतरी होते हुए भी मैं नहीं खोल रहा और भारी कदमो से पार्क से बाहर निकल रहा हूँ, पलट कर देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे उसी शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा है... सच में प्यार जितनी देर भी रहता है हम बस उसी में रहते है... ये सफ़र चलता रहता है और साथ साथ हमारी ज़िन्दगी भी ...

Special. Tq.  


8.2.19

कुछ बातें जो कहनी है तुमसे....

ना जाने यह मेरा अतीत है या और कुछ...
पर ना जाने मुझे मेरी डायरी का पन्ना इतना बेचैन सा क्यों लग रहा है....
हर शाम हवा के धीमे से थपेड़े से भी परेशान होकर फडफडाने लगता है... आज उस पन्ने को खोलते हुए एक सुकून सा लग रहा है... 
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6.1.19

मैं तुमसे भाग के भी तुम तक ही आऊँगा...

दिन भर की इधर उधर बेमानी सी बातों के इतर जल्द से जल्द घर पहुँचने की जाने क्यूँ अजीब सी हड़बड़ी होती है... शायद एक कोने में लौटने भर का सुकून ही है जो मुझे आवारा बना देता है... 

कभी कभी मुझे डर लगता है कि अगर मैं किसी दिन शाम को घर नहीं लौट सका तो डायरी में समेटे हर्फ बिखर तो नहीं जाएँगे... हर सुबह मैं कितना कुछ अधूरा छोडकर उस कमरे से निकलता हूँ, उस अधूरेपन के लिबास पर कोई पासवर्ड भी नहीं लगा सकता... में बारिश भी तो हर शाम होती है, और मैं हर सुबह खिड़की खुली ही भूल जाता हूँ... अगर कभी ज़ोरों से हवा चली तो वो खाली पड़े फड़फड़ाते पन्ने मेरे वहाँ नहीं होने से निराश तो नहीं हो जाएँगे... हर सुबह उस खिड़की से हल्की हल्की सी धूप भी तो आती है, उस धूप को मेरे बिस्तर पर किसी खालीपन का एहसास तो नहीं होगा... मेरे होने और न होने के बीच के पतले से फासले के बीच मेरी कलम फंसी तो नहीं रह जाएगी न, उस कलम की स्याहियों पर न जाने कितने शब्द इकट्ठे पड़े हैं, उन्हें अलग अलग कैसे पढ़ पाएगा कोई... 

मैं कमरा भी ज्यादा साफ नहीं करता, मेरे कदमों के निशान ऐसे ही रह जाएँगे... उन निशानों को मेरी आहट का इंतज़ार तो नहीं होगा न... मेरी अनंत यात्रा के मुकद्दर में नींद तो होगी न, अक्सर जब मुझे नींद नहीं आती तो कुछ सादे से पन्नों पर अपनी ज़िंदगी लिखने का शौक भी पाल रखा है मैंने.... इत्तेफाक़ तो देखो मुझे सिर्फ अपने बिस्तर पर नींद आती है, और मैं अपने साथ अपनी डायरी भी लेकर नहीं निकलता....  

ऐसे में मैं अपनी हथेलियों पर तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ उगा कर भेजा करूंगा.... तुम्हें तो पता है ही कि मेरी हथेलियों पर पसीने बहुत आते हैं, उसे मेरे आँसू न समझ बैठना... 

क्या मुझे साथ में एक्सट्रा जूते रख लेने चाहिए, कहीं किसी तपते रेगिस्तान में फंस गया तो उस आग उगलती रेत में कैसे पूरा करूंगा घर तक वापस आने का सफर... उफ़्फ़ मेरी कलाई घड़ी में इतने दिनों से बैटरि भी नहीं है, वक़्त का पता कैसे लगाऊँगा... इस घड़ी की सूईयों की तरह ये वक़्त भी कहीं भी ठहर जाता है, मेरा वक़्त सालों से मेरे बिस्तर के आस-पास अटक कर रह गया है... तुमको जो घड़ी दी थी न उसमे वक़्त देखते रहना क्या पता उस घड़ी के समय के हिसाब से मेरे कदम तुम्हारी तरफ चले आयें... 

दिल करता है पूरा शहर अपने साथ लिए चलूँ जहां भी जाता हूँ, लेकिन कितना अच्छा होगा न अगर तुम ही बन जाओ मेरा पूरा शहर, मेरी घड़ी, मेरा वक़्त, मेरी डायरी, मेरी कलम, मेरी धूप, मेरी शाम, मेरी बारिश, मेरी पूरी ज़िंदगी...  

16.11.18

My dream moment of love

इन दिनों जो सपने में कई दिनों से देख रही हूँ, लौट लौट कर जाते हुए। वो एक मेट्रो स्टेशन है। मैं हमेशा वही एक मेट्रो स्टेशन देखती हूँ। काफ़ी ऊँचा। कोई तीन मंज़िल टाइप ऊँचा है। और मैं हमेशा की तरह सीढ़ियों से चढ़ती या उतरती हूँ। इसे देख कर कुछ कुछ कश्मीरी गेट के मेट्रो की याद आती है। वहाँ की ऊँची सीढ़ियों की। मैं कब गयी थी किसी से मिलने, कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर उतर कर? याद में सब भी कुछ साफ़ कहाँ दिखता है हमेशा। या कि अगर दिखता ही हो, तो हमेशा जस का तस लिख देना भी तो बेइमानी हुआ। वो कितने कम लोग होते हैं, जिनका नाम हम ले सकते हैं। किसी पब्लिक फ़ोरम पर। ईमानदारी से। फिर ऐसे नाम लेने के बाद लोग एक छोटे से इन्सिडेंट से कितना ही समझ पाएगा कोई। हर नाम, हर रिश्ता अपनेआप में एक लम्बी कहानी होता है। छोटे क़िस्से वाले लोग कहाँ हैं मेरी ज़िंदगी में।

इस मेट्रो स्टेशन के पास नानी की बहन का घर होता है। स्टेशन से कुछ डेढ़ दो किलोमीटर दूर। हमेशा। मैं जब भी इस मेट्रो स्टेशन पर होती हूँ, मेरे प्लैंज़ में एक बार वहाँ जाना ज़रूर होता है।

आज रात सपने में में इस मेट्रो स्टेशन से उतर कर तुम्हारे बचपन के घर चली गयी। शहर जाने कौन सा था और मुझे तुम्हारा घर जाने कैसे पता था। और मैं ऐसे गयी जैसे हम बचपन के दोस्त हों और तुम्हारे घर वाले भी जानते हों मुझे अच्छे से। तुम घर के बरांडे में बैठ कर कॉमिक्स पढ़ रहे थे। हम भी कोई कॉमिक्स ले कर तुमसे पीठ टिकाए बैठ गए और पढ़ने लगे। आधा कॉमिक्स पहुँचते हम दोनों का मन नहीं लग रहा था तो सोचे कि घूमने चलते हैं।

हम घूमने के लिए जहाँ आते हैं वहाँ एक नदी है और मौसम ठंढा है। नदी में स्टीमर चल रहे हैं। जैसे स्विट्ज़रलैंड में चलते थे, उतने फ़ैन्सी। हम हैं भी विदेश में कहीं। मैं स्टीमर जहाँ किनारे लगता है वहाँ एक प्लाट्फ़ोर्म बना है। तुम कहते हो तैरते हैं पानी में। मैं कहती हूँ, पानी ठंढा है और मेरे पास एक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं। तभी प्लैट्फ़ॉर्म शिफ़्ट होता है और मैं सीधे पानी में गिरती हूँ। पानी ज़्यादा गहरा नहीं है। तुम भी मेरे पीछे जाने बिना कुछ सोचे समझे कूद पड़ते हो। फिर तुम तैरते हुए नदी के दूसरे किनारे की ओर बढ़ने लगते हो। मुझे तैरना ठीक से नहीं आता है पर मैं ठीक तुम्हारे पीछे वैसे ही तैरती चली जाती हूँ और हम दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। ये पहली बार है कि मैंने तैरते हुए इतनी लम्बी दूरी तय की है। हम पानी से निकलते हैं और सीढ़ियों पर खड़े होते हैं। इतना अच्छा लग रहा है जैसे लम्बी दौड़ के बाद लगता है। पानी साफ़ है। थोड़ा आगे सीढ़ियाँ बनी हुयी हैं और दूसरी ओर पहाड़ हैं। मैं कहती हूँ, आज मुझे तुम्हारे कपड़े पहनने पड़ेंगे। थोड़ी देर घूम भटक कर वापस जाने का सोचते हैं। उधर रेस्ट्रांट्स की क़तार लगी हुयी है नदी किनारे। हम उनके पीछे नदी की ओर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि उनकी नालियों से नदी का पानी एकदम ही गंदा हो गया है। कोलतार और तेल जैसा काला। वहाँ से पानी में घुसने का सोच भी नहीं सकते। हम फिर तलाशते हुए नदी के ऊपर की ओर बढ़ते हैं जहाँ पानी एकदम ही साफ़ है। तुम होते हो तो मुझे पानी में डर एकदम नहीं लगता। हम हँसते हैं। रेस करते हैं। और नदी के दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। तुम्हारी सफ़ेद शर्ट है उसका एक बटन खुला हुआ है। मैं अपनी हथेली तुम्हारे सीने पर रखती हूँ। पानी का भीगापन महसूस होता है।

हम किसी डबल बेड पर पड़े हुए एक स्टीरियो से गाने सुन रहे हैं। एक किनारे मैं हूँ, लम्बे बाल खुले हुए हैं और बेड से नीचे झूल रहे हैं।एक तरफ़ तुम दीवार पर टाँग चढ़ाए सोए हुए हो। घर में गेस्ट आए हैं। तुम्हारी दीदी या कोई किचन से चिल्ला के पूछ रही है मेरे घर के नाम से मुझे बुलाते हुए...ये मेरा पटना का घर है...और स्टीरियो प्लेयर वही है जो मैंने कॉलेज के दिनों में ख़ूब सुना था। कूलर पर रख के, कमरे में अँधेरा कर के, खुले बाल कूलर की ओर किए, उन्हें सुखाते हुए। तुम मेरे इस याद में कैसे हो सकते हो। इतनी बेपरवाही से।

***
सपने में चेहरे बदलते रहे हैं, सो याद नहीं कितने लोगों को देखा। पर जगहें याद हैं और पानी की ठंढी छुअन। फिर मेरे पीछे तुम्हारा पानी में कूदना भी। सुकून का सपना था। जैसे आश्वासन हो, कि ज़िंदगी में ना सही, सपने में लोग हैं कितने ख़ूबसूरत।

तेज़ बुखार में तीन दिन से नहाए नहीं हैं, और सपना में नदी में तैर रहे हैं!

7.11.18

गुबार है, निकल जाये तो बेहतर है....


मुझे नहीं पता इंसान धोखा देने पर या झूठ बोलने पर कब मजबूर होता है.... लेकिन जब ऐसा कुछ हो कि आपको बहुत गर्व हो कि आपने किसी को धोखा दे दिया तो याद रखना चाहिए कि सामने वाला मूर्ख नहीं बल्कि उसे आप पर भरोसा है, धोखा उसे ही दिया जा सकता है जिसे आप पर भरोसा हो.... खुद को उम्र मे बड़ा और समझदार बताने वाले कभी कभी ऐसी हरकत कर गुजरते हैं कि उनकी समझदारी दो कौड़ी की भी नहीं रह जाती... अब तक कई लोगों ने विश्वास तोड़ा है, मानसिक और आर्थिक दोनों तरीके से नुकसान पहुंचाया है शायद इसलिए कि मैं जल्दी ही किसी पर भरोसा कर लेता हूँ... लेकिन खुशी है कि उन लोगों में से सभी लोगों की नज़दीकियों से उबर गया हूँ, कुछ लोग कहते हैं कि असल बात तब हो जब वो लोग मेरे नजदीक रहते हुये भी मुझपर कोई प्रभाव न डाल पाएँ, लेकिन संभव नहीं हो पाता... हाँ, चाहूँगा ज़रूर कि ऐसा हो पाये भविष्य में, इसलिए कुछ अनचाहे लोगों को न चाहते हुये भी ज़िंदगी में रख छोड़ा है, देखते हैं नज़रअंदाज़ कर के भी... 

ज़िंदगी की करवटें बहुत कुछ सिखाती हैं, कुछ करवटें ज़िंदगी के बिस्तर पर सिलवटें भी छोड़ जाती हैं... सिलवटें जितनी जल्दी सीधी हो जाएँ बेहतर है... पिछले डेढ़ साल इम्तहान के थे, कई मानसिक दवाब थे, बहुत कुछ ऐसा हो रहा था जिससे चाहकर भी दूर नहीं भागा जा सकता था... लेकिन इतना यकीन था कि एक दिन कुछ न कुछ तो बदलेगा ही... ज़िंदगी की बैकफुट पर सही वक़्त का इंतज़ार कर रहा था... 

आज जब बहुत वक़्त बाद ज़िंदगी ने शांति के कुछ पल सौंपे हैं, तो एक गहरी सांस लेकर खुले दिल से इसे एंजोय करना चाहता हूँ, फायनली खुशी और सुकून आ ही गया है हिस्से में... मैं ये नहीं कहता कि अब ज़िंदगी में सब कुछ अच्छा ही होने वाला है लेकिन कुछ बुरे हालातों और लोगों से उबरना अच्छा लग रहा है..... 

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ना ही इस पोस्ट में कुछ साहित्यिक है और न ही कुछ पढ़ने लायक....  मन में एक गुबार था उसे बाहर निकाल देने की कोशिश है बस...

तुम प्यार करोगी न मुझसे..

तुम प्यार करोगी न मुझसे,

तब, जब मैं थक के उदास बैठ जाऊँगा
तब, जब दुनिया मुझपे हंस दिया करेगी
तब, जब अँधेरा होगा हर तरफ
तब, जब हर शाम धुंधलके में भटकूँगा मैं उदास

तब एक उम्मीद का दिया जगाये
तुम प्यार करोगी न मुझसे...

तब, जब मुझे दूर तक तन्हाई का रेगिस्तान दिखाई दे 
तब, जब मेरे कदम लड़खड़ाएं इस रेत की जलन से 
तब, जब मैं मृगतृष्णा के भंवर में फंसा हूँ 
तब, जब इश्क़ की प्यास से गला सूख रहा हो मेरा 

तब अपनी मुस्कान ओस की बूंदों में भिगोकर 
तुम प्यार करोगी न मुझसे...

तब, जब ये समाज स्वीकार नहीं करे इस रिश्ते को
तब, जब प्रेम एक गुनाह मान लिया जाए
तब, जब सजा मिले हमें एक दूसरे के साथ की
तब, जब मुँह फेर लेने का दिल करे इस दुनिया से

तब इस साँस से लेकर अंतिम साँस तक
तुम प्यार करोगी न मुझसे... 
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मैं तुमसे भाग के भी तुम तक ही आऊँगा...

22.10.18

closed room....ugg yeh ratein

इन दिनों मैं बहुत कुछ ऐसा सोचने लगा हूँ जो मैं नहीं चाहता कि तुम पढ़ो, कुछ रद्दी से पड़े पन्नों पर लिखकर उसे फाड़ कर फेक देता हूँ.... कभी हमारे बीच में की गयी कुछ अनकही बातों के सिरे को भी पकड़ो तब भी उससे नयी कोई बात नहीं निकलती... ससर गाँठ की तरह सारी पुरानी बातों के गिरहें खुलकर बस सीधा सन्नाटा बच जाता है... मैं फिर से ख़ानाबदोश होने लगा हूँ, दिन भर बेफालतू इधर उधर बौखलाया फिरता हूँ ... इंसान चाहकर भी अपनी परछाईयों से नहीं भाग सकता, शायद इसलिए मुझे अंधेरा अच्छा लगता है... किसी से नज़र चुराने की ज़रूरत नहीं है, खुद से खुद की बातों में खो जाना ही असीम सुख है... कितना अच्छा होता न अगर अंधेरा ही सच होता, इस तेज रौशनी में मेरी आखें चौंधिया जाती है, दिल में जलन होती है सो अलग... 

शाम को इस अंधेरे से कमरे में बैठकर अपने अंदर की रगड़ सुन रहा हूँ, दिमाग बार-बार दिल को कहता है आखिर ज़रूरत क्या थी इश्क़ करने की, अब भुगतो... और दिल चुपचाप खुद को एक कमरे में बंद कर लेता है, मुझे डर लगता है कहीं यूं अकेले रहते रहते मैं किसी बंद कमरे में तब्दील न हो जाऊँ... 

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तो मेरी धड़कन 
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