6.1.19

मैं तुमसे भाग के भी तुम तक ही आऊँगा...

दिन भर की इधर उधर बेमानी सी बातों के इतर जल्द से जल्द घर पहुँचने की जाने क्यूँ अजीब सी हड़बड़ी होती है... शायद एक कोने में लौटने भर का सुकून ही है जो मुझे आवारा बना देता है... 

कभी कभी मुझे डर लगता है कि अगर मैं किसी दिन शाम को घर नहीं लौट सका तो डायरी में समेटे हर्फ बिखर तो नहीं जाएँगे... हर सुबह मैं कितना कुछ अधूरा छोडकर उस कमरे से निकलता हूँ, उस अधूरेपन के लिबास पर कोई पासवर्ड भी नहीं लगा सकता... में बारिश भी तो हर शाम होती है, और मैं हर सुबह खिड़की खुली ही भूल जाता हूँ... अगर कभी ज़ोरों से हवा चली तो वो खाली पड़े फड़फड़ाते पन्ने मेरे वहाँ नहीं होने से निराश तो नहीं हो जाएँगे... हर सुबह उस खिड़की से हल्की हल्की सी धूप भी तो आती है, उस धूप को मेरे बिस्तर पर किसी खालीपन का एहसास तो नहीं होगा... मेरे होने और न होने के बीच के पतले से फासले के बीच मेरी कलम फंसी तो नहीं रह जाएगी न, उस कलम की स्याहियों पर न जाने कितने शब्द इकट्ठे पड़े हैं, उन्हें अलग अलग कैसे पढ़ पाएगा कोई... 

मैं कमरा भी ज्यादा साफ नहीं करता, मेरे कदमों के निशान ऐसे ही रह जाएँगे... उन निशानों को मेरी आहट का इंतज़ार तो नहीं होगा न... मेरी अनंत यात्रा के मुकद्दर में नींद तो होगी न, अक्सर जब मुझे नींद नहीं आती तो कुछ सादे से पन्नों पर अपनी ज़िंदगी लिखने का शौक भी पाल रखा है मैंने.... इत्तेफाक़ तो देखो मुझे सिर्फ अपने बिस्तर पर नींद आती है, और मैं अपने साथ अपनी डायरी भी लेकर नहीं निकलता....  

ऐसे में मैं अपनी हथेलियों पर तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ उगा कर भेजा करूंगा.... तुम्हें तो पता है ही कि मेरी हथेलियों पर पसीने बहुत आते हैं, उसे मेरे आँसू न समझ बैठना... 

क्या मुझे साथ में एक्सट्रा जूते रख लेने चाहिए, कहीं किसी तपते रेगिस्तान में फंस गया तो उस आग उगलती रेत में कैसे पूरा करूंगा घर तक वापस आने का सफर... उफ़्फ़ मेरी कलाई घड़ी में इतने दिनों से बैटरि भी नहीं है, वक़्त का पता कैसे लगाऊँगा... इस घड़ी की सूईयों की तरह ये वक़्त भी कहीं भी ठहर जाता है, मेरा वक़्त सालों से मेरे बिस्तर के आस-पास अटक कर रह गया है... तुमको जो घड़ी दी थी न उसमे वक़्त देखते रहना क्या पता उस घड़ी के समय के हिसाब से मेरे कदम तुम्हारी तरफ चले आयें... 

दिल करता है पूरा शहर अपने साथ लिए चलूँ जहां भी जाता हूँ, लेकिन कितना अच्छा होगा न अगर तुम ही बन जाओ मेरा पूरा शहर, मेरी घड़ी, मेरा वक़्त, मेरी डायरी, मेरी कलम, मेरी धूप, मेरी शाम, मेरी बारिश, मेरी पूरी ज़िंदगी...  

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Princess

(In.. Dream...) Heeyy  Woh dekho Meri princess jisko Dekhne ke liye meri ankhein tarsa gyi thii...Main jata hoon uske pas... Dhere dhere h k...